बुधवार, 18 नवंबर 2020

आख़िर मुझे क्यों ?/कविता/anjalee chadda bhardwaj

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विधा - कविता

शीर्षक - आख़िर मुझे क्यों ?


हवस की गंदी भूख तुम्हारी थी
उसको मिटाने को मुझे क्यों नोचकर खाया ?

काम पिपासा तुम्हारे भीतर थी
उसके बुझाने का ज़रिया मुझे क्यों बनाया ?

पाप तुम्हारे हृदय में समाया था
उसका कहर तुमने मेरे शरीर पर क्यों ढाया ?

राक्षसी - पापी प्रवृत्ति तुम्हारी थी
उसका दंश मेरी आत्मा को क्यों पहुँचाया ?

विकृत मानसिकता तो तुम्हारी थी
उसका बदनुमा दाग मुझ पर क्यों लगाया ?

हैवानियत का नंगा खेल तुम्हारा था
उसका तुच्छ सा मोहरा मुझे क्यों बनाया ?

क्या दोष था मेरा,क्या बिगाड़ा था
तुम्हारा जो यह अत्याचार मुझ पर ढाया ?

-© Anjalee Chadda Bhardwaj
 
मौलिक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित




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भाई -दूज/कविता/anjalee chadda bhardwaj

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विधा - कविता

शीर्षक - भाई-दूज


दीपावली पश्चात कार्तिक शुक्ल-पक्ष द्वितीया को भाई दूज का पर्व है आता

प्रतिवर्ष संसार इसे भाई-बहन के अनोखे प्रेम प्रतीक पावन पर्व रूप में मनाता

भाईयों के मस्तक पर टीके के रूप में बहनों का स्नेह एवं आशीर्वाद दमकता

परिलक्षित होती है इस प्रेम के बंधन में भाई और बहन के स्नेह की सरसता

केवल यही एक निस्वार्थ स्नेह बंधन ऐसा जो हर कसौटी पर खरा उतरता

जीवनपर्यंत एक दूजे  के प्रति आदरभाव एवं मान-सम्मान सहित निभता

प्यारे भाई, मैं आई हूँ तुम्हारे ललाट पर सजाने टीका अपने दुलार का

दीर्घायु,आरोग्य,सुख-संपदा,खुशहाली की लिए मनोकामना अपार का

कदापि यह न सोचना कि बहनें किसी स्वार्थवश या कुछ लेने हैं आतीं

बहनें आती हैं मान-सम्मान पाने झोलियाँ भर-भर कर दुआएँ दे जातीं

निस्वार्थ संबंधों में माता के पश्चात पूजनीय स्थान बहन का ही आता

बहन के हृदय से निकली आशीष की शक्ति से यमराज भी घबराता

-© Anjalee Chadda Bhardwaj

मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना



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दीप मालिका पर्व/anjalee chadda bhardwaj

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विधा -  कविता

शीर्षक - दीप मालिका पर्व

दिनाँक - १४/११/२०२०
दिवस - शनिवार

देवी महालक्ष्मी एवं गणपति के संग करें कुबेर देवता का पूजन दीवाली में
धूप - दीप - नैवेद्य - फल - फूल - मेवे - मिष्ठान्न सजाएँ पूजन की थाली में

चिर आरोग्य,सुख - संपदा , ऐश्वर्य- वैभव सहित कामना करें सदैव खुशहाली की
अनुपम सौंदर्य परिलक्षित करती जगमग  दीपकों की इस रोशनी मतवाली की

द्वार सजे तोरण उन्नत और शुभता की प्रतीक उकेरी रंग-बरंगी रंगोली निराली है
प्रेम - प्यार,मेल- सौहार्द्र, आपसी भाईचारे का यह पावन प्रकाश पर्व दीपावली है

कार्तिक अमावस्या को दीपावली की रैना रहता विलुप्त नभमंडल से रजनीश
अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाती  चहुंदिशि दीपमालिका प्रकाशित

श्रीरामचंद्र सिया लखन सहित लौटे इस दिन वनवास से यह किंवदंती प्रचलित
अनुमोदन करते इस तथ्य का दो रामायण महाकाव्य बाल्मीकि एवं तुलसीकृत

द्वापर में श्री कृष्ण द्वारा कार्तिक अमावस्या को दैत्य नरकासुर वध है वर्णित
माँ महालक्ष्मी एवं ऋषि धन्वंतरि की उत्पत्ति का भी यही दिवस है पौराणिक

इन्हीं अद्भुत अप्रतिम कथाओं के कारण युगों से दीपों का त्यौहार है प्रचलित
रिद्धि - सिद्धि सुख - संपत्ति बरसे अपार सब को दीपावली की बधाई हार्दिक

-© Anjalee Chadda Bhardwaj
मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित






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समय /dimple khipla

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                 "समय"



   समय की धारा कैसे बहती।
    पता नहीं क्या -क्या है कहती।
    दुखों-सुखों का संगम लेकर, 
    बस ऐसे ही ये बहती रहती।
    सुखों में  सब खुश रहते हैं। 
   गमों की धारा सब को रूलाती। 
   कर्मफल है अपना-अपना.... 
   समय की धारा यही समझाती




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आस्था/कविता/indu sahu

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विधा: चौपाई

विषय: आस्था


आस्था रखो पावन पुनीता,
रामायण हो या हो गीता।
ज्ञान भक्ति की राह बताये,
अंधकार को दूर भगाये।

छल-कपट नहीं मन में लाओ,
ईशभक्ति के दीप जलाओ।
इसके सम ना कोई दूजा,
चाहे करलो कितनी पूजा।

तुम आस्था स्वयं पर राखो,
अर्जुन तुल्य निशाना साधो।
सदा सत्कर्म करते जाओ,
जग में निज पहचान बनाओ।

अपनी एक पहचान बनाना।
जिससे तुम ही जाओ जाना।।
सबको नित सम्मान सिखाना।
अपना तुम हर फ़र्ज़ निभाना।।

-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)




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आना जाना लगा रहेगा/कविता/indu sahu

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*आना जाना लगा रहेगा*


आना जाना लगा रहेगा, 
इस दुनिया की महफ़िल में।
कब तक तू ख़फ़ा रहेगा, 
अपनों से दिल ही दिल में।

तू भी जनता है और दुनिया भी, 
कि तू कितना क़ाबिल है!
क्या नहीं है इस दुनिया में, 
जो तुझे नहीं हासिल है।

कोई सा भी ऐसा काम नहीं, 
जो तेरे लिए मुश्किल है।
जो साथ है उसे पास रख, 
फ़िकर में क्यों तेरा ये दिल है।

आना जाना लगा रहेगा, 
इस दुनिया की महफ़िल में।
कब तक तू यूँ ख़फ़ा रहेगा, 
अपनों से दिल ही दिल में।।

स्वरचित मौलिक रचना

-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)




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हरदम आगे बढ़ना है/कविता/indu sahu

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*हरदम आगे बढ़ना है*




वीरान सी राह पर, 
यूँ ही अकेले चलना है।
अपना पथ प्रशस्त कर, 
हरदम आगे बढ़ना है।।

निज स्वयं का ले प्रकाश, 
कर्म पथ पर कर प्रयास।
नित हो प्रति क्षण विकास, 
कभी भी मन न हो हताश।।

वीरान सी राह पर, 
हर पल तेरा ही साथ है।
निज मान और सम्मान भी, 
स्वयं तेरे ही हाथ है।।

मंज़िल भी तेरे पास है, 
तुझको यह अहसास है।
स्वयं पर यह विश्वास है, 
मन में भी एक आस है।।

उन्नति के शिखर पर प्रतिक्षण, 
आगे ही नित बढ़ना है।
वीरान सी इस राह पर, 
यूँ ही अकेले चलना है।।

स्वरचित मौलिक रचना

-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)



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अंदर झाँक के देखो/कविता/indu sahu

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*आने अंदर झाँक के देखो*




ज़िन्दगी के इस सफर में, 
अजब ही यहाँ खेला है।
अपने अंदर झाँक कर देखो, 
अनेक भावनाओं का मेला है।।

कभी सुख है कभी दुःख है, 
कभी खुशी है तो कभी गम है।
नित उमड़ती हुई भावों का, 
जीवन तो इसका संगम है।।

अपने अंदर झाँक कर देखो, 
कहीं अच्छाई तो कहीं बुराई।
बुराइयों को दूर हटाकर, 
भरो स्वयं में तुम अच्छाई।।

ज़िन्दगी के इस सफर में, 
तू बस अकेला है।
अपने अंदर झाँक कर देखो, 
तू खुद ही अलबेला है।।

स्वरचित मौलिक रचना

-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)






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नन्ही सी कली/ कविता/indu sahu

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जीवन की तुम नन्ही सी कली, 
बड़े दिनों बाद हमें मिली।
जीवन रूपी इस बगिया में, 
मानो एक सुगंधित फूल खिली।।

हमारे चेहरे की मुस्कान हो, 
हम सबकी तुम जान हो।
फूल जैसी हो तुम, 
फूलों सी तुम्हारी मुस्कान हो।।

सूर्य समान हो प्रकाश तुम्हारा, 
पर्वत समान संकल्प हो।
तुम्हारा ही हो यह जग सारा, 
लक्ष्य के आगे न विकल्प हो।।

फूलों सी कोमल हो तुम, 
उन्हीं के जैसा नूर रहे।
निज दृढ़ इच्छाशक्ति, 
यूँ ही तुममें भरपूर रहे।।

नित कर्म अपना करते जाओ, 
खुद में तुम विश्वास रखो।
जो लक्ष्य तुम्हारा है अपना, 
पाने की बस तुम आस रखो।।

जगमग चमके तुम्हारा जीवन, 
चहुँ ओर हो उजियारा।
उन्नति के उस शिखर पर, 
चमकेगा तुम्हारा ही सितारा।।

फूल जैसी हो तुम, 
ज़रूरत पड़ने पर दुर्गा जैसी।
तुममें अपार शक्ति है, 
लोगों में मतभेद कैसी।।

खुशियों से भरा जीवन हो, 
नहीं आए कहीं गम की धारा।
फूल जैसी हो तुम, 
फूलों से हो मुस्कान तुम्हारा।।

स्वरचित मौलिक रचना

-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)







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त्योंहार/dimple khipla

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           " त्यौहार "


त्यौहारों का मौसम आया। 
सभी के मनो को खूब हरशाया। 
कोई बनाए शक्रपारे, कोई निमकी-पकौडे। 
खाने-पीने में सब ने मिलके बड़ा मजा उडाया।
रंगोली भी बन गई है,बंधनवार दरवाजे पे लगाया।
रंग-बिरंगी लडियाँ लग गई सब के घरों के बाहर। 
पटाखों का भी बच्चों ने अच्छा-खासा ढेर लगाया। 
त्यौहारों का मौसम आया, त्यौहारों का मौसम आया। 




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बेगानी/dimple khipla

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                "बेगानी"


बेटी का दूसरा नाम बेगानी रख दिया जमाने ने। 

आज़ादी से जीने का हक छीन लिया जमाने ने। 

खुलकर नहीं हँस सकती तुम, कह दिया जमाने ने। 

बेगानी हो, हर लड़की का फैसला कर दिया जमाने ने ।

हो गई शादी, मैं बन गई दुल्हन खुशियाँ कमाने को। 

बेगाने घर से आई है,फिर से ठप्पा लगा दिया जमाने ने

बस बहुत हुआ.. अब बस, तंग आ गई मैं इस ताने से। 

न बेटी,न बहु बोलो मुझे,वही ठीक है नाम(बेगानी)जो

दिया है मुझे जमाने ने..बेगानी, बेगानी, बेगानी, बेगानी। 







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हालात/dimple khipla

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          " हालात"

हर बार ननद बुरी नहीं होती। 

हर बार गलती भाबी की भी नहीं होती। 

हालात ही हमें मजबूर कर देते है, सच तो ये है कि

 ननद से अच्छी भाबी की कोई दोस्त नहीं होती। 






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अहोई अष्टमी /dimple khipla

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अहोई अष्टमी की जय-जय कार। 
करूँ मैं माँ का वर्त और अपने बच्चों से प्यार। 
सुमति देना माँ बच्चों को,करें वो बड़ों का सतिकार। 
लम्बी आयु देना बालों को, विनती करो ये सविकार।
सभी तरफ माँ की जय-जय कार🙏🙏🙏🙏🙏








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विस्मृत बलिदान और आज़ादी/kaur dilwant

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शीर्षक:- विस्मृत बलिदान और आज़ादी
 विधा:- गद्य 

विस्मृत बलिदान और आज़ादी,

संज्ञान नहीं है आजादी की निदाघ दुसाध्य एहसानों का
प्रगतिवादी युग में शोर सुनाई देता विस्मृत बलिदानों का।


                प्रिय देशवासियों, प्रत्येक वर्ष एक प्रथा की भांँति भारतीय अपना आजादी दिवस मनाने को बहुत उत्सुकता दिखाते हैं। इस दिन के आगमन से पूर्व ही तरह-तरह की तैयारियांँ भारत के कोने कोने में देखी जा सकती हैं।एक प्रश्न मेरे हृदय में सदैव ही प्रति ध्वनित होता रहता है कि क्या इस दिवस के सूत्रधार हजारों बलिदानी जो अपना अस्तित्व देश की स्वतंत्रता की खातिर मिटा गए, क्या हम उन्हें उचित सम्मान दे रहे हैं।

          हमारी प्रगतिशील जिंदगी में ख़ास-ओ-अहम दिवस, समारोह ,आनंद के उत्सव, हमारी दिनचर्या तथा विभिन्न कार्यों में हमारी सहभागिता सुनिश्चित रूप से अहम है।
          
          परंतु हमारी संस्कृति, परंपराओं, तथा हमारे आज के संरक्षक वीर बलिदानी हमारी स्मृति में कहांँ तक जीवित हैं?
          
           हृदय द्रवित हो उठता है जब विद्यार्थियों के साथ इस विषय में वार्तालाप करते हुए उनकी आंँखों में वह चमक या आदर नजर नहीं आता जो एक देश प्रेमी के स्वभाव में होता है। ऐसा केवल विद्यार्थियों के साथ ही नहीं है यदि उनके माता पिता उनका लालन पोषण ऐसे वातावरण में करते जहांँ पर उनको अपनी विरासत के संरक्षकों का ज्ञान उचित माहौल में दिया गया होता, उन्हें आजादी के संघर्ष की गाथाएंँ, तत्कालीन हालात, जनमानस पर हुआ अत्याचार, और उसका प्रतिकार, नौजवानों का मातृभूमि के प्रति निस्वार्थ प्रेम, विपरीत परिस्थितियों में धैर्य तथा साहस का अद्भुत परिचय, पुरुषों के साथ साथ नारियों का अनुपम बलिदान, कम उम्र बालकों का स्वतंत्रता के प्रति साहसी दृष्टिकोण, आजादी प्राप्त करने के लिए अनथक एवं अनंत परिश्रम आदि अधिक ना सही थोड़ा ही परिचय करवाया गया हो।
  
          भारत देश जो लंबे समय तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा, पहले मुगलों ने भारत भूमि का शोषण किया तत्पश्चात अंग्रेजों ने भी पूर्ण लाभ उठाया, परिणामस्वरूप भारतीयों के रोष का शिकार भी होना पड़ा। स्वाभिमानी देशभक्तों ने अपने देश की रक्षा की खातिर ना केवल आवाज उठाई अपितु अवसर के अनुसार हथियार भी उठाने में गुरेज नहीं किया। अत्याचारी आक्रमणकारियों, शोषणकारी व्यवस्था का उचित उत्तर देने का पूर्ण प्रयास किया।

           यह लिखना या कहना जितना सरल लगता है उतना सुगम नहीं है ऐसी व्यवस्था के सामने तन कर खड़े हो जाना जो कि ना केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो अपितु शक्तिशाली साम्राज्य का उदाहरण भी हो। 

           शहीदों के बलिदान को श्रद्धांजलि देने के लिए फूलों के हार चढ़ा देना ही काफी नहीं होता बल्कि उनके दिखाए गए मार्ग पर चलकर देश की समृद्धि के लिए उचित उपाय करना भी हमारा कर्तव्य है। देश की सुरक्षा के लिए,मौलिक तथा नैतिक कर्तव्यों का निर्वाहन करना अत्यंत जरूरी है।
       
     हमारे ऐसे कई देश भगत बलिदानी हैं जिन्होंने अपनी जिंदगियाँ वतन की हिफ़ाज़त के लिए कुर्बान कर दीं,
 जिनमें से ज्यादातर के तो नाम भी किसी को याद नहीं, और अगर कुछ एक बलिदानियों के नाम समृति पटल पर जिंदा है तो उनकी वीरता और बलिदान को उचित सम्मान देने में भी हम लोग असमर्थ महसूस करते हैं।
         
           उनकी भावी पीढ़ियांँ या उत्तराधिकारी किस दशा में है, कितनी कठिनाइयों से अपना जीवन यापन कर रहे हैं 
 हमारी दृष्टि से अनदेखा क्यों रह जाता है?
           
        मैंने इस गद्य में किसी क्रांतिकारी, बलिदानी या शहीद का नाम उल्लेखित नहीं किया क्योंकि केवल लिख देने से उनके प्रति समर्पण प्रकट नहीं किया जा सकता,।
           
       उन बलिदानों को उचित सम्मान तभी प्राप्त होगा जब उनके लहू से सिंचित इस भूमि को वास्तव में उनके सपनों का भारत बनाने में सक्षम होंगे।
         

  जय भारत
  जय वीर जवान





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बरदास्त/ कविता/dimple khipla

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©️कॉपीराइट-      पंचपोथी के पास संकलन की अनुमति है।इन रचनाओं का प्रयोग      की अनुमति बिना कही नही किया जा सकता हैं।






"बरदाशत"


माना बहुत मुश्किल है बरदाश्त करना, 

जब कोई गलत बोल कर आत्मा को रौंद देता है। 

वही असली इंसान है जो दिल को संभाल लेता है,और 

बेकार लोगो की बातें एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देता है। 







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आजादी/कविता/sanju tripathi

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शीर्षक- आजादी


समाज की कुरीतियों और कुप्रथाओं की बेड़ियों को तोड़ने 
से पहले नारियों को अपनी सोच को आजाद करना होगा।

रूढ़िवादी, दकियानूसी मानसिकता को छोड़कर नए विचारों 
और सोच को बदल कर अपनी सोच का विकास करना होगा।

जात-पात के भेदभाव को मिटाकर सब जन के अंतर्मन में 
हर नर-नारी के मन में समानता के भावों को जगाना होगा।

आजादी की बातें करने से पहले प्रत्येक नारी को आजादी के
सही मायनों को खुद ही जानना, समझना व अपनाना होगा।

नारी के लिए आजादी शब्द आज भी बस एक छलावा ही है,
नारियां यहां आजाद होने का करती रहती बस दिखावा ही है।

जानती हैं अभिव्यक्ति की आजादी को हर नारी लेकिन फिर भी, 
अपनी सही बात कहने और समझाने की हिम्मत नहीं रखती हैं।

खुद को बांध रखा है खुद की ही बनायी सीमाओं की बेड़ियों में 
अपने सपनों को उड़ान देने से आसमां में उड़ने से डरती रहती हैं।

नारी जब खुद को खुद से ही आजाद करने का संकल्प लेगी, 
सही मायने में तभी नारी आजाद होगी, आजादी को समझेगी।

जब हर नारी आत्मविश्वास के साथ अपने पैरों पर खड़ी होगी, 
तभी हर नारी अपनी आजादी का जश्न खुलकर मना पाएगी।

Dr. Sanju Tripathi
-"Ek Soch"



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आजकल के रिश्ते/कविता/dimple khipla

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  "आजकल के रिश्ते"



रिशतों का हाल तो देखो...क्या हो गया यारो।
मतलब पर टिकी है हर रिशते की नींव। 
इंसान से सौ गुना अच्छे है ये जन्तु और जीव। 
जरूरत है  गर किसी को तो गधे को बाप बना लेंगे,
वरना कहेंगे क्या कभी पहले हम मिले है यारों... 
नहीं.. नहीं मुझ से दूर रहो,मेरा समय मत बिगाडो।
बस यही सबसे बड़ा सच है आजकल का यारों। 




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शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

परिवार/कविता/जेआर'बिश्नोई'

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               परिवार                   



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परिवार - शीर्षक

सब मिलजुल कर जहाँ रहते है हम

एक दुसरे को चाहते है हर दम

सब मिल बाँट कर काम करते

नही किसी से कभी भी लड़ते

साथ मिलकर आगे बढ़ते

नही किसी से कभी भी डरते

चाचा चाची ताऊ ताई भैया भैई

दादा की बात न टाले कोई

ऐसा है मेरा सूखी परिवार

हर रोज मनाता त्योंहार।






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रविवार, 8 नवंबर 2020

प्रेम पथिक/कविता/anjalee chadda bhardwaj

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                प्रेम पथिक           




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विधा :कविता
शीर्षक: प्रेम पथिक
दिनांक:०३/११/२०२०
दिवस: मंगलवार



प्रेम पथ पर अग्रसर राही प्रेम पथिक कहलाते हैं

एकदूजे का संबल बनकर जीवन लक्ष्य को पाते हैं

कैसी भी पग -बाधा सक्षम नहीं विचलित करने में

आनंद की परमानुभूति हो या अवसाद भरे क्षण में

आशाओं का संचार अथवा हो निराशा का अवसर संबल

प्रदान करें परस्पर चौंसठ घड़ी आठों प्रहर

कर्तव्य निर्वाह का दायित्व पूर्ण करें संग आजीवन

सर्वदा साथ रहें हर अनजानी डगर एवं नगर निर्जन

निष्फल प्रयास करे कोई पर इनको तोड़ ना पाते हैं

अप्रतिम स्नेह-विश्वास डोर से आजीवन बंध जाते हैं

जीवन के प्रत्येक सुगम-दुर्गम पथ पर साथ निभाते हैं

प्रेम पथिक जन एक ही आत्मा एक प्राण कहलाते हैं


-© Anjalee Chadda Bhardwaj

मौलिक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना



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पंचपोथी - एक परिचय      Bloomkosh अन्धकार है वहाँ जहाँ आदित्य नहीं, मुर्दा है वो देश जहाँ साहित्य नहीं।। नमस्कार  तो कैसे है आप लोग? ठीक हो ...