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मंगलवार, 3 नवंबर 2020

विश्वासघात/कहानी/anjalee chadda bhardwaj

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                        विश्वासघात                    

                                                                               
 
©️कॉपीराइट : anjalee chadda bhardwaj पंचपोथी के पास संकलन की अनुमति है।इन रचनाओं का प्रयोग  anjalee chadda bhardwaj   की अनुमति बिना कही नही किया जा सकता हैं।


कहानी - विश्वासघात
लेखिका- अंजलि चड्ढा भारद्वाज
दिनाँक- ०२/११/२०२०
दिवस- सोमवार


मित्रों यह मेरा अपना अनुभव है जिसे कहानी का रूप देकर आप सबके समक्ष रखने का प्रयास कर रही हूँ।

मैं आज आप सबको एक सत्य घटना से अवगत कराने जा रही हूँ, जो मेरे अतीत का हिस्सा है। आप कल्पना कीजिएगा कि बाल्यकाल में घटित होने वाली कोई भी घटना कोमल हृदय पर कितनी अमिट छाप छोड़ जाती है। फल स्वरुप मुझे आज तक किसी व्यक्ति पर विश्वास करने में कुछ समय अवश्य लगता है।

मेरी बाल्यकाल से ही साहित्य में रूचि थी। छोटी-छोटी कविताएँ एवं लघु कथाएंँ लिखने हेतु मैं अपनी कलम चलाने लगी थी। 

यह घटना उस समय की है जब मैं कक्षा 10 की छात्रा थी ।वार्षिकोत्सव निकट आ रहा था और उसी अवसर पर हमारे विद्यालय की वार्षिक पत्रिका का विमोचन भी होना नियत था ।अतः कक्षा अध्यापिका जी ने सभी से कुछ ना कुछ लिख कर लाने को कहा। यह सुनते ही मेरी घनिष्ठ सखी ने तत्काल अध्यापिका जी से कहा - महोदया यह तो पहले से ही कविताएं इत्यादि लिखती है, कृपया एक बार आप उनका अवलोकन करें। मैंने अपनी लघु-कथाएँ एवं कविताएँ कक्षा अध्यापिका को दिखाई और उन्होंने वह सभी रचनाएं रचना देख कर भूरि - भूरि सराहना की और कुछ छोटी-मोटी त्रुटियों को दूर करने की सलाह दी।

 विद्यालय के वार्षिकोत्सव में दूसरे शहर से आए एक नामी साहित्यकार से मेरी कक्षा अध्यापिका ने कार्यक्रम समाप्ति के बाद मुझे मिलवाया और उनसे मेरा साहित्यिक मार्गदर्शन करने की गुज़ारिश की। साहित्यकार महोदय ने मुझसे मेरी डायरी लेकर रख ली और सरसरी नजर से उसे देखकर कहा ठीक है देखता हूँ यदि कोई संभावना नज़र आई तो मैं अवश्य सहायता करूँगा ।

मेरे साथ - साथ मेरी अध्यापिका जी भी अत्यंत प्रसन्न थी कि चलो अब मेरे प्रयासों को एक सही दिशा मिल जाएगी।

इस घटनाक्रम के लगभग एक सप्ताह के बाद लाइब्रेरी पीरियड में अपनी लाइब्रेरी में समाचार पत्र पढ़ते हुए मुझे मुख्य पृष्ठ पर उन्हीं साहित्यकार महोदय की तस्वीर कविताओं सहित नज़र आई जिसमें वह पुरस्कार लेते हुए दिख रहे थे और वह सभी कविताएंँ मेरी थीं।

यह देख कर मानो मेरे पैरों के नीचे से धरती हिल गई ।इस विश्वासघात से मेरी आँखों से अश्रुधारा बह निकली और मैं सीधा अपनी कक्षा अध्यापिका के पास आई।

परंतु मेरी तरह वह भी कुछ कर पाने में असमर्थ थी क्योंकि वह साहित्यकार महोदय अपने आप में ही एक बहुत बड़ा हस्ताक्षर थे। 
शिक्षा- उस दिन के बाद से मैंने एक बात गाँठ बांँध कर रख ली कि कभी भी भावनाओं के आवेगवश किसी पर बिना सोचे विचारे विश्वास नहीं करना चाहिए ।

-© Anjalee Chadda Bhardwaj

मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित




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