बुधवार, 18 नवंबर 2020

आजादी/कविता/sanju tripathi

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शीर्षक- आजादी


समाज की कुरीतियों और कुप्रथाओं की बेड़ियों को तोड़ने 
से पहले नारियों को अपनी सोच को आजाद करना होगा।

रूढ़िवादी, दकियानूसी मानसिकता को छोड़कर नए विचारों 
और सोच को बदल कर अपनी सोच का विकास करना होगा।

जात-पात के भेदभाव को मिटाकर सब जन के अंतर्मन में 
हर नर-नारी के मन में समानता के भावों को जगाना होगा।

आजादी की बातें करने से पहले प्रत्येक नारी को आजादी के
सही मायनों को खुद ही जानना, समझना व अपनाना होगा।

नारी के लिए आजादी शब्द आज भी बस एक छलावा ही है,
नारियां यहां आजाद होने का करती रहती बस दिखावा ही है।

जानती हैं अभिव्यक्ति की आजादी को हर नारी लेकिन फिर भी, 
अपनी सही बात कहने और समझाने की हिम्मत नहीं रखती हैं।

खुद को बांध रखा है खुद की ही बनायी सीमाओं की बेड़ियों में 
अपने सपनों को उड़ान देने से आसमां में उड़ने से डरती रहती हैं।

नारी जब खुद को खुद से ही आजाद करने का संकल्प लेगी, 
सही मायने में तभी नारी आजाद होगी, आजादी को समझेगी।

जब हर नारी आत्मविश्वास के साथ अपने पैरों पर खड़ी होगी, 
तभी हर नारी अपनी आजादी का जश्न खुलकर मना पाएगी।

Dr. Sanju Tripathi
-"Ek Soch"



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