रविवार, 8 नवंबर 2020

करवाचौथ/कविता/anjalee chadda bhardwaj

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                करवाचौथ               



©️कॉपीराइट:anjalee chadda bhardwaj     पंचपोथी के पास संकलन की अनुमति है।इन रचनाओं का प्रयोग    anjalee chadda bhardwaj      की अनुमति बिना कही नही किया जा सकता हैं।





विधा : कविता

शीर्षक : करवाचौथ



पिया आई करक चतुर्थी की पावन बेला

कहीं बीत जाए ना घड़ी सलोनी



आवन राह तुम्हारी निश दिन ताके बिछा    

 पलक-पाँवडे तुम्हारी वैरागिनी



चूड़ी - कंगन, बिछुआ - पायल हथेलियों

में रंग - रंगीली मेहंदी रचा कर



कजरा लगा कजरारे नैनों में, मैं माँग भरे

बैठी हूँ मिलन आस लगाकर



कठिनाई से संभाले बैठी हूँ स्वयं को केवल 

तुम्हारे दिए उन दिलासों पर



साँसें चलती हैं मेरी परंतु थमने सी लगती

हैं कोई संदेशा ना आने पर



निहारती हूँ खिड़की से तो नज़र आते हैं मुझे

अठखेलियाँ करते चंद्र-चंद्रिका



शीतलता का तनिक आभास नहीं अपितु 

जगा देते विरह - रूपी ज्वाला



स्वयं के ही विचारों एवं अनुभूतियों की मैं

सहसा पुनः बनने लगती हूँ बंदिनी



निरंतर विचारों की उधेड़बुन में उलझती

होने लगती हूँ फ़िर मैं निंद्रा कामिनी



पुनः बीत जाएगी आज पावन मिलन की

बेला नव-प्राण ,नव-ऊर्जा संचारिणी



सबके जीवन में छाया प्रेम उजाला परंतु 

केवल आस तुम्हारी बनी मेरी संगिनी



-© Anjalee Chadda Bhardwaj

मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना





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