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पंचपोथी
रचनाकार व उनकी रचनाएँ
बुधवार, 18 नवंबर 2020
आख़िर मुझे क्यों ?/कविता/anjalee chadda bhardwaj
भाई -दूज/कविता/anjalee chadda bhardwaj
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शीर्षक - भाई-दूज
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दीप मालिका पर्व/anjalee chadda bhardwaj
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शीर्षक - दीप मालिका पर्व
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समय /dimple khipla
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"समय"
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आस्था/कविता/indu sahu
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विषय: आस्था
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आना जाना लगा रहेगा/कविता/indu sahu
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*आना जाना लगा रहेगा*
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हरदम आगे बढ़ना है/कविता/indu sahu
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*हरदम आगे बढ़ना है*
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अंदर झाँक के देखो/कविता/indu sahu
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*आने अंदर झाँक के देखो*
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नन्ही सी कली/ कविता/indu sahu
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जीवन की तुम नन्ही सी कली, बड़े दिनों बाद हमें मिली।जीवन रूपी इस बगिया में, मानो एक सुगंधित फूल खिली।।
हमारे चेहरे की मुस्कान हो, हम सबकी तुम जान हो।फूल जैसी हो तुम, फूलों सी तुम्हारी मुस्कान हो।।
सूर्य समान हो प्रकाश तुम्हारा, पर्वत समान संकल्प हो।तुम्हारा ही हो यह जग सारा, लक्ष्य के आगे न विकल्प हो।।
फूलों सी कोमल हो तुम, उन्हीं के जैसा नूर रहे।निज दृढ़ इच्छाशक्ति, यूँ ही तुममें भरपूर रहे।।
नित कर्म अपना करते जाओ, खुद में तुम विश्वास रखो।जो लक्ष्य तुम्हारा है अपना, पाने की बस तुम आस रखो।।
जगमग चमके तुम्हारा जीवन, चहुँ ओर हो उजियारा।उन्नति के उस शिखर पर, चमकेगा तुम्हारा ही सितारा।।
फूल जैसी हो तुम, ज़रूरत पड़ने पर दुर्गा जैसी।तुममें अपार शक्ति है, लोगों में मतभेद कैसी।।
खुशियों से भरा जीवन हो, नहीं आए कहीं गम की धारा।फूल जैसी हो तुम, फूलों से हो मुस्कान तुम्हारा।।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
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त्योंहार/dimple khipla
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" त्यौहार "
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बेगानी/dimple khipla
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"बेगानी"
बेटी का दूसरा नाम बेगानी रख दिया जमाने ने।
आज़ादी से जीने का हक छीन लिया जमाने ने।
खुलकर नहीं हँस सकती तुम, कह दिया जमाने ने।
बेगानी हो, हर लड़की का फैसला कर दिया जमाने ने ।
हो गई शादी, मैं बन गई दुल्हन खुशियाँ कमाने को।
बेगाने घर से आई है,फिर से ठप्पा लगा दिया जमाने ने
बस बहुत हुआ.. अब बस, तंग आ गई मैं इस ताने से।
न बेटी,न बहु बोलो मुझे,वही ठीक है नाम(बेगानी)जो
दिया है मुझे जमाने ने..बेगानी, बेगानी, बेगानी, बेगानी।
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हालात/dimple khipla
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" हालात"
हर बार ननद बुरी नहीं होती।
हर बार गलती भाबी की भी नहीं होती।
हालात ही हमें मजबूर कर देते है, सच तो ये है कि
ननद से अच्छी भाबी की कोई दोस्त नहीं होती।
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अहोई अष्टमी /dimple khipla
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अहोई अष्टमी की जय-जय कार। करूँ मैं माँ का वर्त और अपने बच्चों से प्यार। सुमति देना माँ बच्चों को,करें वो बड़ों का सतिकार। लम्बी आयु देना बालों को, विनती करो ये सविकार।सभी तरफ माँ की जय-जय कार🙏🙏🙏🙏🙏
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विस्मृत बलिदान और आज़ादी/kaur dilwant
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शीर्षक:- विस्मृत बलिदान और आज़ादी विधा:- गद्य
विस्मृत बलिदान और आज़ादी,
संज्ञान नहीं है आजादी की निदाघ दुसाध्य एहसानों काप्रगतिवादी युग में शोर सुनाई देता विस्मृत बलिदानों का।
प्रिय देशवासियों, प्रत्येक वर्ष एक प्रथा की भांँति भारतीय अपना आजादी दिवस मनाने को बहुत उत्सुकता दिखाते हैं। इस दिन के आगमन से पूर्व ही तरह-तरह की तैयारियांँ भारत के कोने कोने में देखी जा सकती हैं।एक प्रश्न मेरे हृदय में सदैव ही प्रति ध्वनित होता रहता है कि क्या इस दिवस के सूत्रधार हजारों बलिदानी जो अपना अस्तित्व देश की स्वतंत्रता की खातिर मिटा गए, क्या हम उन्हें उचित सम्मान दे रहे हैं।
हमारी प्रगतिशील जिंदगी में ख़ास-ओ-अहम दिवस, समारोह ,आनंद के उत्सव, हमारी दिनचर्या तथा विभिन्न कार्यों में हमारी सहभागिता सुनिश्चित रूप से अहम है। परंतु हमारी संस्कृति, परंपराओं, तथा हमारे आज के संरक्षक वीर बलिदानी हमारी स्मृति में कहांँ तक जीवित हैं? हृदय द्रवित हो उठता है जब विद्यार्थियों के साथ इस विषय में वार्तालाप करते हुए उनकी आंँखों में वह चमक या आदर नजर नहीं आता जो एक देश प्रेमी के स्वभाव में होता है। ऐसा केवल विद्यार्थियों के साथ ही नहीं है यदि उनके माता पिता उनका लालन पोषण ऐसे वातावरण में करते जहांँ पर उनको अपनी विरासत के संरक्षकों का ज्ञान उचित माहौल में दिया गया होता, उन्हें आजादी के संघर्ष की गाथाएंँ, तत्कालीन हालात, जनमानस पर हुआ अत्याचार, और उसका प्रतिकार, नौजवानों का मातृभूमि के प्रति निस्वार्थ प्रेम, विपरीत परिस्थितियों में धैर्य तथा साहस का अद्भुत परिचय, पुरुषों के साथ साथ नारियों का अनुपम बलिदान, कम उम्र बालकों का स्वतंत्रता के प्रति साहसी दृष्टिकोण, आजादी प्राप्त करने के लिए अनथक एवं अनंत परिश्रम आदि अधिक ना सही थोड़ा ही परिचय करवाया गया हो। भारत देश जो लंबे समय तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा, पहले मुगलों ने भारत भूमि का शोषण किया तत्पश्चात अंग्रेजों ने भी पूर्ण लाभ उठाया, परिणामस्वरूप भारतीयों के रोष का शिकार भी होना पड़ा। स्वाभिमानी देशभक्तों ने अपने देश की रक्षा की खातिर ना केवल आवाज उठाई अपितु अवसर के अनुसार हथियार भी उठाने में गुरेज नहीं किया। अत्याचारी आक्रमणकारियों, शोषणकारी व्यवस्था का उचित उत्तर देने का पूर्ण प्रयास किया।
यह लिखना या कहना जितना सरल लगता है उतना सुगम नहीं है ऐसी व्यवस्था के सामने तन कर खड़े हो जाना जो कि ना केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो अपितु शक्तिशाली साम्राज्य का उदाहरण भी हो।
शहीदों के बलिदान को श्रद्धांजलि देने के लिए फूलों के हार चढ़ा देना ही काफी नहीं होता बल्कि उनके दिखाए गए मार्ग पर चलकर देश की समृद्धि के लिए उचित उपाय करना भी हमारा कर्तव्य है। देश की सुरक्षा के लिए,मौलिक तथा नैतिक कर्तव्यों का निर्वाहन करना अत्यंत जरूरी है। हमारे ऐसे कई देश भगत बलिदानी हैं जिन्होंने अपनी जिंदगियाँ वतन की हिफ़ाज़त के लिए कुर्बान कर दीं, जिनमें से ज्यादातर के तो नाम भी किसी को याद नहीं, और अगर कुछ एक बलिदानियों के नाम समृति पटल पर जिंदा है तो उनकी वीरता और बलिदान को उचित सम्मान देने में भी हम लोग असमर्थ महसूस करते हैं। उनकी भावी पीढ़ियांँ या उत्तराधिकारी किस दशा में है, कितनी कठिनाइयों से अपना जीवन यापन कर रहे हैं हमारी दृष्टि से अनदेखा क्यों रह जाता है? मैंने इस गद्य में किसी क्रांतिकारी, बलिदानी या शहीद का नाम उल्लेखित नहीं किया क्योंकि केवल लिख देने से उनके प्रति समर्पण प्रकट नहीं किया जा सकता,। उन बलिदानों को उचित सम्मान तभी प्राप्त होगा जब उनके लहू से सिंचित इस भूमि को वास्तव में उनके सपनों का भारत बनाने में सक्षम होंगे।
जय भारत जय वीर जवान
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बरदास्त/ कविता/dimple khipla
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"बरदाशत"
माना बहुत मुश्किल है बरदाश्त करना,
जब कोई गलत बोल कर आत्मा को रौंद देता है।
वही असली इंसान है जो दिल को संभाल लेता है,और
बेकार लोगो की बातें एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देता है।
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आजादी/कविता/sanju tripathi
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आजकल के रिश्ते/कविता/dimple khipla
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"आजकल के रिश्ते"
रिशतों का हाल तो देखो...क्या हो गया यारो।मतलब पर टिकी है हर रिशते की नींव। इंसान से सौ गुना अच्छे है ये जन्तु और जीव। जरूरत है गर किसी को तो गधे को बाप बना लेंगे,वरना कहेंगे क्या कभी पहले हम मिले है यारों... नहीं.. नहीं मुझ से दूर रहो,मेरा समय मत बिगाडो।बस यही सबसे बड़ा सच है आजकल का यारों।
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शुक्रवार, 13 नवंबर 2020
परिवार/कविता/जेआर'बिश्नोई'
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परिवार
परिवार - शीर्षक
सब मिलजुल कर जहाँ रहते है हम
एक दुसरे को चाहते है हर दम
सब मिल बाँट कर काम करते
नही किसी से कभी भी लड़ते
साथ मिलकर आगे बढ़ते
नही किसी से कभी भी डरते
चाचा चाची ताऊ ताई भैया भैई
दादा की बात न टाले कोई
ऐसा है मेरा सूखी परिवार
हर रोज मनाता त्योंहार।
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रविवार, 8 नवंबर 2020
प्रेम पथिक/कविता/anjalee chadda bhardwaj
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प्रेम पथिक
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पंचपोथी - एक परिचय Bloomkosh अन्धकार है वहाँ जहाँ आदित्य नहीं, मुर्दा है वो देश जहाँ साहित्य नहीं।। नमस्कार तो कैसे है आप लोग? ठीक हो ...