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विधा - कविता
शीर्षक - आख़िर मुझे क्यों ?
उसको मिटाने को मुझे क्यों नोचकर खाया ?
काम पिपासा तुम्हारे भीतर थी
उसके बुझाने का ज़रिया मुझे क्यों बनाया ?
पाप तुम्हारे हृदय में समाया था
उसका कहर तुमने मेरे शरीर पर क्यों ढाया ?
राक्षसी - पापी प्रवृत्ति तुम्हारी थी
उसका दंश मेरी आत्मा को क्यों पहुँचाया ?
विकृत मानसिकता तो तुम्हारी थी
उसका बदनुमा दाग मुझ पर क्यों लगाया ?
हैवानियत का नंगा खेल तुम्हारा था
उसका तुच्छ सा मोहरा मुझे क्यों बनाया ?
क्या दोष था मेरा,क्या बिगाड़ा था
तुम्हारा जो यह अत्याचार मुझ पर ढाया ?
-© Anjalee Chadda Bhardwaj
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