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विधा - कविता
शीर्षक - भाई-दूज
दीपावली पश्चात कार्तिक शुक्ल-पक्ष द्वितीया को भाई दूज का पर्व है आता
प्रतिवर्ष संसार इसे भाई-बहन के अनोखे प्रेम प्रतीक पावन पर्व रूप में मनाता
भाईयों के मस्तक पर टीके के रूप में बहनों का स्नेह एवं आशीर्वाद दमकता
परिलक्षित होती है इस प्रेम के बंधन में भाई और बहन के स्नेह की सरसता
केवल यही एक निस्वार्थ स्नेह बंधन ऐसा जो हर कसौटी पर खरा उतरता
जीवनपर्यंत एक दूजे के प्रति आदरभाव एवं मान-सम्मान सहित निभता
प्यारे भाई, मैं आई हूँ तुम्हारे ललाट पर सजाने टीका अपने दुलार का
दीर्घायु,आरोग्य,सुख-संपदा,खु शहाली की लिए मनोकामना अपार का
कदापि यह न सोचना कि बहनें किसी स्वार्थवश या कुछ लेने हैं आतीं
बहनें आती हैं मान-सम्मान पाने झोलियाँ भर-भर कर दुआएँ दे जातीं
निस्वार्थ संबंधों में माता के पश्चात पूजनीय स्थान बहन का ही आता
बहन के हृदय से निकली आशीष की शक्ति से यमराज भी घबराता
-© Anjalee Chadda Bhardwaj
मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना
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