यादों की किताब
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विधा - कविता
शीर्षक- यादों की किताब
मोहब्बत से भरे मेरे दिल का हाल
ज़िंदगी की खुली किताब
जब भी होती हूँ मैं तन्हा अक्सर
खुल जाया करती है ये जनाब
फिर उलझती सी जाती हूँ
ढूंढने में उन सवालों के जवाब
वो जो देखे थे कुछ हसीन नज़ारे
थी हकीकत या फ़िर कोई ख़्वाब
था गज़ब का नशा बातों में उनकी
जैसे हो वो कोई पुरानी शराब
जाने कैसे लगा बैठे खुद को लत
इश्क़-ओ-मोहब्ब़त की बेहद ख़राब
अचानक फिर टूट जाता है भ्रम
थमता है यादों का काफिला जनाब
यादें तो सिर्फ़ गुजरा हुआ पल हैं
मुझे संवारना है अब अपना आज
अब हरगिज़ नहीं चाहती रहूं तन्हा
और फिर खुले उन यादों की किताब
क्योंकि यादों का क्या,वो बिन बुलाए
मेहमान सी चली आती हैं जनाब
-© Anjalee Chadda Bhardwaj
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