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*हरदम आगे बढ़ना है*
वीरान सी राह पर,
यूँ ही अकेले चलना है।
अपना पथ प्रशस्त कर,
हरदम आगे बढ़ना है।।
निज स्वयं का ले प्रकाश,
कर्म पथ पर कर प्रयास।
नित हो प्रति क्षण विकास,
कभी भी मन न हो हताश।।
वीरान सी राह पर,
हर पल तेरा ही साथ है।
निज मान और सम्मान भी,
स्वयं तेरे ही हाथ है।।
मंज़िल भी तेरे पास है,
तुझको यह अहसास है।
स्वयं पर यह विश्वास है,
मन में भी एक आस है।।
उन्नति के शिखर पर प्रतिक्षण,
आगे ही नित बढ़ना है।
वीरान सी इस राह पर,
यूँ ही अकेले चलना है।।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
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