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बुधवार, 18 नवंबर 2020

अंदर झाँक के देखो/कविता/indu sahu

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*आने अंदर झाँक के देखो*




ज़िन्दगी के इस सफर में, 
अजब ही यहाँ खेला है।
अपने अंदर झाँक कर देखो, 
अनेक भावनाओं का मेला है।।

कभी सुख है कभी दुःख है, 
कभी खुशी है तो कभी गम है।
नित उमड़ती हुई भावों का, 
जीवन तो इसका संगम है।।

अपने अंदर झाँक कर देखो, 
कहीं अच्छाई तो कहीं बुराई।
बुराइयों को दूर हटाकर, 
भरो स्वयं में तुम अच्छाई।।

ज़िन्दगी के इस सफर में, 
तू बस अकेला है।
अपने अंदर झाँक कर देखो, 
तू खुद ही अलबेला है।।

स्वरचित मौलिक रचना

-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)






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