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शनिवार, 24 अक्तूबर 2020

कविता/Prangya parimita

 पंचपोथी - एक परिचय


नमस्कार 
तो कैसे है आप लोग?
ठीक हो ना! चलिये शुरुआत करते है सबसे पहले आपका बहुत बहुत स्वागत और हार्दिक अभिनंदन!

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Prangya parimita


रचना 1-
नारी
°°°°°°


अवला दुर्वला उपाधि मिली बहुत,
शक्ति स्वरूपिणी बन अब नारी...!
पर्दानाशीन ज़िन्दगी बहुत बीता ली तूने,
अब आंखों से दुश्मन को कर भस्म तू नारी..!
कर पदाघात अब मिथ्या के मस्तक पर,
सत्यानवेषण के पथ पर निकलो नारी...!
बहुत दिनों तक बनी दीप कुटिया का,
अब बनो ज्वाला की चिंगारी...!


रचना 2-
प्यार (में और तुम)
°°°°°°°°°°′°°°°°°
जैसे सूखा ताल बचा रहे या कुछ कंकड़ या कुछ काई,
जैसे धूल भरे मेले में, चलने लगे साथ तन्हाई!
जैसे ध्रुव तारा बेबस हो, स्याही सागर में घुल जाए,
जैसे बरसों बाद मिली चिट्ठी भी बिना पढ़े धूल जाए!
मेरे मन पर भी तेरी यादें कुछ ऐसी अंकित है,
जैसे खंडहर पर पुराने सासक का शासन काल खुल जाए!
तेरे बिन होने का मतलब भी कुछ ऐसा होता है,
जैसे लावारिश बच्चे की आधी रात में नींद खुल जाए!

रचना 3-
दिल चाहता है
°°°°°°°°°°°°°

दिल चाहता है,
सुबह जो खोलूं अखियां
हो पहले दीदार तेरा!
नींद से बोझल नैना मेरे.
देखें जिसे सबसे आखिर में..
वह चेहरा भी ही बस तेरा!

दिल चाहता है,
हवा की फिजाएं यूं चलते रहे
यह मदहोश पन यूं बने रहे!
आप हमारे बालों को यूं सहलाते रहे.
हम आपके खयालों में यूं गुनगुनाते रहें..
यह पागलपंती यूं ही बनी रहे!


-•°Rimjhim°•



रचना 4-
 प्रकृति
°°°°°°°°°क्या खूब बनाया है खुदा ने कायनात को,
दिलनशी पौधे हैं यहां जैसे स्वर्ग से आया पारिजात हो।

षट पदों के चूमने से छा रहे हैं कली कली,
रूखे पेड़ पर लटक रही है नवजात सी छिपकली।

लहरा रहे हैं फिज़ा फिज़ा हवाओं के चलन से,
सुनहरे धूप पिघला रहे हैं कोहरों को सिलन से।

हरी चुनरिया पर सिंदूर भर भूमि श्रृंगार करती है,
रात भर सोई सूरजमुखी अब आहिस्ता आहिस्ता निखरती है।


रचना 5-

अफसोस करेगा मानुस
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

सुप्त सी है यह मनुष्यता
जागा है नींद से भ्रस्टता...!

अणु परमाणु से दिखा रहा है शक्ति अपना
वसुमति बिभाजन करता है सीमारेखा से अपना...!

जनमेजय है सत्य सनातन धर्म
अवतारेगा देवता इक दिन समझाने इसका मर्म...!

-•°Rimjhim•°




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