गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

कविता/ neetu ashwani

 पंचपोथी - एक परिचय


नमस्कार 
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ठीक हो ना! चलिये शुरुआत करते है सबसे पहले आपका बहुत बहुत स्वागत और हार्दिक अभिनंदन!

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Neetu ashwani/ कवयित्री


रचनाएँ:-

किस्सा -ए - जहाँ 

किस्सा- ए - जहाँ  क्या अर्ज करूं,
मत पूछो दास्तां - ए - हयात, 
महामारी के खौफ ने किया जीना दुश्वार, 
काम धंधे सब चौपट हुए, 
कैसे उतरेगी जीवन की नैया पार, 
मंजर हो रहा भयावह धरा का मत पूछो हाल, 
कहीं मिल रही धरती कहीं आ रहा सैलाब, 
कहीं बरस रहे विकराल बादल, 
कहीं सूखा नदियों का आकार, 
मानव जीवन का हो रहा अंत की ओर आगाज़।



 लहू का आँसू 

उम्मीद का किला जब ढह जाता है, 
आँखों से लहू का आँसू टपक जाता है।
हाथों की लकीरों के भरोसें चले थे अंगारों पर 
पर जलन ने एहसास कराया चला हाथों से नहीं पैरों से जाता है। 
उम्मीद का किला जब ढह जाता है, 
तब आँखों से लहू का आँसू टपक जाता है। 
अंधा करते है जिंदगी में जिन पर विश्वास 
अक्सर राहों में धोखा उन्हीं से मिल जाता है। 
उम्मीद का दामन जब छूट जाता है 
जब अपना ही अपनों से दग़ा कर जाता है। 
तब आँखों से नहीं दिल से लहू का आँसू टपक जाता है।




 एक - अनेक 

चाँद एक सूरज भी एक 
पर रौशनी में उनकी किरणें अनेक 
धरती एक आसमान भी एक 
पर जिंदगी और तारे अनेक 
अग्नि, जल, पवन भी एक 
पर उनके महत्व है अनेक 
ईसा, रब, खुदा, ईश्वर एक 
पर जातियों में बटे बंदे अनेक 
सब को बांधे प्रेम की डोर एक 
पर नफरतों के द्वार अनेक





दुनिया की इस भीड़ में 

दुनिया की इस भीड़ में ढूंढा हमदम हमराह, 
मिला न कोई अपना सा मन चाहा हमराह, 
समझौते की शर्तों पर लगा दिया खुदको दांव, 
आशाओं की बलि चढ़ा दी किया न मोल भाव, 
अजनबी इस भीड़ में गुम गए मेरे सपने कहा, 
मिल जाए कोई एक तो जिंदगी हों जाए आसान, 
सपनों की अब न ख़्वाहिश बन जाए बस एक बात, 
जीवन भर के संघर्ष का मिल जाए सुखद परिणाम, 
आशा की एक किरण की मन लिए हुए है आस, 
पूरा होगा एक सपना तो दिल कोई है विश्वास




बंदे ने कहा 

बंदे ने कहा भगवान से ना यूं तो कहर बरसा,
रहम कर अपने बंदों पर प्यार की शमा जला,
खुदा ने कहा उस बंदे से तू धरा का हाल बता,
क्या बनाया था जैसा मैंने वैसी की तूने संभाल,
छेड़छाड़ करता रहा धरती बंजर करता रहा,
खुशियों की खातिर सीने में खंजर गढ़ता रहा,
भू लूट खसौट के अब तू मेरी शरण में आया है,
बनाया था संसार जिसे मैंने सबके लिए एक सा,
उस जमीन को तूने अपनी सरहदों में बांधा है,
मानवता की बलि चढ़ा तूने शोहरत को चाहा है,
झांक कर देख अपने गिरेबान में पहले तू इंसान,
तू अब मुझसे क्या मुंह लेकर मांगने आया है ।




शीर्षक  - तुम बिन 

साँझ कहे अस्त होते सूरज से महत्व नहीं कुछ मेरा तुम बिन, 
तुम जो अस्त ना होते तो कैसे ढलता ये दिन। 

रात के अंधकार को प्रकाश से नहला सकता ना कोई तुम बिन, 
सूर्योदय की लालीमा से ही प्रकाशवान ये दिन।

चलती पुरवैया, बहता नदियाँ में पानी कैसे संभव जनजीवन तुम बिन, 
बरसते काले बादलों से ही हरियाला ये दिन। 

रात - दिन का काल चक्र व बदलता मौसम कैसे होता संभव तुम बिन, 
मौसम के बदलाव से ही उज्वल ये दिन।
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शीर्षक  -   बिटिया 
 ना जाने कब पता ही ना चला
छोटी सी लाडो बड़ी हो गई
बिटिया मेरी ब्याह के लायक हो गई
रिश्ते आने लगे हैं अब उसके
मेरे दिलों की धड़कन अब तेज हो गई
खुद को भूल गई मैं अब
उसको समझाने में मैं लग गई
दुनियादारी सिखाने मैं लग गई
अब तक जिसे प्यार से रखा था मैंने
उससे आज घर के काज सिखाने में लग गई
मेरे बदले हुए रूप से वह हैरान है
ब्याह के नाम से वह परेशान हैं
कैसे समझाऊं मैं उसको
विवाह के मायने कैसे बतलाऊं उसको
अपनी बिटिया की सखी थी मैं
अनजाने में मैं फिर से मां हो गई
 अपनी लाडो के लिए मैं आज सख्त हो गई
ना जाने कब पता ही ना चला
मेरी लाडो बड़ी हो गई
बिटिया मेरी ब्याह के लायक हो गई।
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शीर्षक  - जोधपुर 
 राव ज़ोधा ने बसाया                        
नाम दिया जोधपुर।                    
लोगों के दिलों में प्यार                    
सम्मान राज़ करें भरपूर।                 
सूर्य देव की कृपा से                                    
जग सूर्य नगरी से जाने।                     
मां चामुंडा की इस धरती पर            
दुश्मन भी आने से कांपे।                  
पानी को तरसे ना कोई                
झालरों,बावड़ियों संग                     
पर्कौटो का निर्माण किया। 
ठंडक रहें घरों में तो 
घरों को नीला रंग दिया। 
छत्तर के पत्थर से अद्भुत 
महल का निर्माण किया। 
मिर्ची बड़ा और कचोरी का 
पकवानों में नाम दिया। 
घूमर, गणगौर, घूँघट, पगड़ी 
संस्कृति का ज्ञान दिया 
महामारी के इस क्षण में
सबने हिम्मत से काम लिया। 
भाई चारा और अपनेपन की 
गाँठ को और मजबूत किया।
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शीर्षक - नारी का संकल्प 

हर नारी करें यह दृढ़ संकल्प,
हर औरत की यह जिम्मेदारी है,
घर की दहलीज पार करें ना कोई,
यह निश्चित करना उसकी जिम्मेदारी है।
हर नारी करें यह दृढ़ संकल्प,
अब बारी उसकी आई हैं,
घरकी दहलीज पार करें ना कोई,
यह तिकड़म उसे लगानी है।
झांसी दुर्गा रहती हैं उसमें,
यह दिखलाने की उसकी बारी है,
ना समझे प्यार से कोई तो ,
अब छड़ी उसे उठानी हैं।
कब भेौर भई ,कब सांझ ढली ,
गफलत में दुनिया सारी हैं,
इस गफलत में कोई साहस ना खोए,
यह समझाने की उसकी बारी है।
हर नारी करें यह दृढ़ संकल्प,
आज की नारी सब पर भारी,
इस कथनी को सार्थक करने की,
अबउसकी बारी है ।
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शीर्षक -  पंच पोथी 

जिंदगी का यही सार पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल, आकाश, 

पंच पोथी का यही ज्ञान समझ लो तो जीवन आसान।  

जितना बाहर उतना भीतर पंच तत्व से निर्मित जीवन,

पढ़ लो पंच पोथी की नीति ब्रह्मांड की सरचंना उसी पें चलती। 

ज्ञान का भरा है इन पंच पोथीयों में अन गिनत भंडार, 

जीवन सफल उसी का जो जला पाए अपने भीतर ज्योत अपार।

शीर्षक- माता-पिता

मैं तो तुच्छ जन्मा था प्राणी पर निर्भीक बनाया तुमने 
अपने संस्कारों से सत्य पर चलना सिखाया तुमने 

अपनी इच्छाओं की सीढ़ी पर ख़्वाब मेरे चढ़ाए तुमने 
जीवन भर संघर्ष कर मेरी राहों में फूल सजाए तुमने 

जन्म दिया, नाम दिया, दुनिया का ज्ञान दिया तुमने 
आज बुलंदियों पर हूँ मैं जिस उसकी राह दी तुमने

 माता - पिता का हर फ़र्ज़ अदा किया मेरे प्रति तुमने 
अपने कर्मों से आगे बढ़ाऊँगा जो संस्कार दिए तुमने 


शीर्षक- धोखे का दाम 


दुनिया में धोखा इस कदर पैर पसार रहा 
जैसे मिल रहा हो देने पर उसका दाम 

जज़्बातों की कीमत नहीं टूटे कौड़ी के भाव
दिल आता अब कईयों पर भुला क्या होता प्यार 

क्रोध की सीमा होती अब बात - बात पर पार 
जैसे दिमाग की सेना हो लड़ने को हर पल तैयार

तोड़ रिश्तों की डोर पल में बदल जाते दिल के तार 
कलयुग के इस युग में धोखा बिकता सरेआम 

सोचो जो होता दुनिया में धोखे का भी उचित दाम 
तो शायद मिल जाता उससे भी थोड़ा सा इज्जत का भाव�


मेरा प्यार


शादी के पहले और बाद



 बचपन की यादें



अन्य रचनाएँ 


पंचपोथी एक साहित्यिक मंच है,इस मंच पर आपको मिलेगी हिन्दी साहित्य रचना (जैसे कविता,गज़ल,कहानी आदि) 
तो देर किस बात की आइये पढ़ते है कुछ रचनाएँ जो प्रस्तुत है इस ब्लॉग पर
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