पंचपोथी - एक परिचय
नमस्कार
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Priya pandya
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रचनाएँ:-
Poetry -1
शीर्षक उड़ने की चाहत
उड़ने की चाहत में भूल गये हम अपनों को !
छोड़ मानवता तबज्जो दी सिर्फ सपनों को!
शोहरत तो मिली पर संग में पायी तन्हाई !
भूल रहे संस्कार रिश्तों की हो रही रुसवाई।
लालच कामयाबी की ,हमें कितना दूर है ले आयी!
ना वतन से प्रेम रहा,ना अपनों को याद कर आँखों में नमी आई!
हो गये मशरूफ़, फिर भी मशहूरियत हाथ न आयी!
निगल गयी अनमोल प्रेम को कैसी ये लालच हरजायी ।
इतनी ऊपर उड़े कि जमीं भी नज़र हमें ना आयी!
आत्मा हमारी चकाचौंध और जीत की चाह मे भरमाई।
शीर्षक :- हेराफेरी
विधा :- कविता 2
चहूँ ओर संसार में जाने कैसी चल रही हेरा फेरी
गरीब मुँह ताक रहा अमीरों में पैसो की जोरा जोरी
नेता का बेटा नेता बने, न शिक्षा रही अब प्रधान
अपना रूतबा बढ़ाने को सेल्फी खींच देते हैं सब दान
उसकी टोपी इसके सर करके सब काट रहे हैं दिन
गरीब भूखा ही सो जाता बेचारा रात को तारे गिन
पहन सफेद लिबास करबद्ध हो जनता के समक्ष होते खड़े
दो कौड़ी से ना पूछते हैं साहब ,जो बन जाते हैं नेता बड़े
गरीब की रोटी छीन यहाँ सब गोदाम अपने भर रहे
धनी हुआ धनाढ्य गरीब तिल तिल कर भूखे मर रहे
अपनी रोटी सेंकने में हर कोई हुआ बैठा यहाँ व्यस्त
सबको लक्ष्मी माँ से मतलब चाहे संन्यासी हो या गृहस्थ।
कर घोटाले बड़े बड़े खुद को सफेद बगुला है बताते
कौन जाने ये कीचड़ से पकड़कर कितनी मछलियाँ खाते
अजगर से होते ये घूसखोर निगल गरीब को तनिक न मारे डकार।
सिक्को की गूंज के आगे ना सुनाई आये इन्हें दलितों की पुकार।
देख इस संसार की हेराफेरी को लेखक और कवी हुए दंग।
किस- किस पर कलम से वार करें अब कितनों पर करें व्यंग्य!
-priya pandya
शीर्षक:- रिश्ते
कविता -3
अवतरण हुआ जब इस धरा पर रिश्तों की सौगात पाई
आँखे खुली जब दुनिया में संग पाई रिश्तों की परछाई।
मातृ- पितृ संग कई रिश्तों की दौलत उपहार में पाई।
सुरक्षा कवच की भांति मुश्किलों से निजात मुझे दिलाई।
इन रिश्तों ने ही तो हमें दुनियादारी की समझ सिखायी।
रिश्तों रूपी पुष्प से ही ही जीवन की बंजर जमीजमीं में बहार आई।
रिश्तों ये वो डोर है जिसकी प्रेम गाँठ कभी ना खुल पायी!
सहेजे जाते ही एहतियात से जो पड़े गाँठ फिर ना सुहायी ।
तो रूपी डोर में ही जिंदगी रूपी मोतीयों की माला बनाई ।
एक मामूली पत्थर ने इस माला में जड़ दुनिया में शोभा पाई।
हारा सदा वो जिंदगी में जिसको रिश्तों की कदर न आयी।
अश्रु मिले जीवन के अंत में और सदा उसे मिली तन्हाई।
बड़े अनमोल होते हैं ये रिश्ते प्रेम से इसे सहेज लो भाई।
विश्वास से इन्हें मजबूत करो,बिना रिश्तों के खुशियाँ कहाँ मिल पाई?
-priya pandya
शीर्षक:- परिवार
कविता :- 4
यह वो सुरक्षा कवच है जिसके इर्द गिर्द बसता हमारा संसार!
खुशियों की बुनियाद है ,मुस्कुराने की वजह है परिवार!
जिसके संग बीता हर छण लगता ,जैसे मानों कोई तीज त्योहार!
जीवन जीने का आनंद तभी आता जब संग होता है परिवार।
मुसीबत पड़ने पर एक दूजे पर यहाँ देते सब जान न्योछार ।
त्याग बलिदान से सराबोर होता, प्रेम होता इसमें बेशुमार!
दिल से जुड़े होते यहाँ रिश्ते न होता हृदय में ईर्ष्या द्वेष सुमार !
जैसे ईंट से ईंट मिल मकान बनता वैसे सदस्यों से बनता परिवार।
हर सदस्य होता एक ईंट की भांति बुजुर्ग होता मजबूत दीवार!
प्रहरी सम रक्षा करता सदा कर सक कोई शत्रु अपनों पर प्रहार!
विश्वास की सीमेंट इसे मजबूत बनाती माँ होती है इसका द्वार!
पिता होता छत इमारत की ना प्रवेश कर पाये मुसीबतों की बौछार!
अपनों के लिए कोमल पुष्प सा, दुश्मनों के लिए शमशीर तेज़ धार!
जो संग हो परिवार की ढाल, तो किसी भी चुनौती में ना होती है हार।
वो मूर्ख नादां है जो ना समझे कि क्या होता रिश्तों से बना परिवार !
बेशक शोहरत और कामयाबी मिलती। पर सदा रहती। प्रेम की दरकार।
-priya pandya
शीर्षक:- छोड़ बाबुल का घर
कविता:- 5
सदियों पुरानी रीति समाज की हँसकर हमें भी निभाना है!
अपने प्यारे बाबुल का घर छोड़, हमें पिया संग जाना है!
सोन चिरैया मैं बाबा की अब मुझे घर दूसरा चहकाना है!
खत्म हुआ यहाँ दानापानी अब ससुराल में घरौंदा बसाना है!
नन्हीं परी मैं अपनी अम्मा की पंख आते ही उड़ जाना है!
जैसे सजाया घर बाबुल का अब घर पिया का सजाना है!
लाडो रानी मैं भैया की अब ससुराल को अपना बनाना है !
बहन के हर फर्ज़ की तरह अब बहु का फर्ज निभाना है!
दुलारी चाचा चाची की अब सास ससुर का दिल जीतना है!
दिल से को अपना मान, अपने संस्कारों का मान बढ़ाना है!
बिंदिया चूड़ी कंगन पायल पहन मुझे सुहागन बन जाना है!
कर सोलह सिंगार मुझे अब अपने पिया के घर जाना है!
जैसे बेटी का फर्ज निभाया हर रिश्ता बहू बन मुझे निभाना है!
जुड़कर कई नये रिश्तों से ,सबको मुझे अपना बनाना है!
वधु धर्म की मर्यादा निभाने हर हद से मुझे गुजर जाना है!
सुख दुःख की संगिनी बन पिया कि मुझे पत्नी धर्म निभाना है !
लिए जो बचन अग्नि को मान साक्षी उनका मान बढ़ाना है!
सबके दिलों पर राज करने बहु नहीं बेटी बनकर दिखाना है!
अपनी मेहंदी की खुशबू से पिया का घर द्वार महकाना है!
सिन्दूर की लाली की तरह ससुराल में लालिमा फैलाना है!
बाबुल का घर रोशन किया अब द्वार पिया का सजाना है!
हाथों में हाथ थाम पिया के हर परिस्थिति में साथ निभाना है!
-priya pandya
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