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शनिवार, 24 अक्तूबर 2020

कविता/shahjadi begum

 पंचपोथी - एक परिचय


नमस्कार 
तो कैसे है आप लोग?
ठीक हो ना! चलिये शुरुआत करते है सबसे पहले आपका बहुत बहुत स्वागत और हार्दिक अभिनंदन!

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Shahjadi begum 


शीर्षक-माँ

मैने ज़िन्दगी में उस पल 
सारी कायनात की खुशियो
को पा लिया था।
जब मेरी जन्नत ने 
मुझे मन्नत में पा लिया था।
क्योंकि तब तो मेरे 
वजूद का कतरा भी नहीं था ।
जब मेरी "माँ" ने आपसे 
हाथ उठाकर दुवा में  
मुझे माँग लिया था ।
   


शीर्षक-माँ

वो पूरा दिन भर काम करके भी आराम करती हैं 
खुद बीमार होकर भी वो सबका ख्याल रखती है 
वो अपने को भूल कर सबकी परवाह करती हैं 
खुद सारी बलाए लेकर वो अपना जा-निसार करती हैं 
हर न मुमकिन को मुमकिन रब से करवा लेती है 
चाहे जितना सितम करे औलाद लेकिन उसके लब से सदा दुवा निकलती है
ऐसी तो सिर्फ दुनियांँ में "माँ" ही होती है। 



शीर्षक-भूख
................

भूख का कोई धर्म नहीं 
होता साहब, 
ये तो हर किसी को लगती हैं 
फर्क तो सिर्फ इतना है कि
अमीर की भूख पैसो से भी पूरी नहीं होती है
और गरीबो की तो बासी रोटी से भी मिट जाती हैं। 


शीर्षक-माँ

मेरी पहचान 
मेरी "माँ" से है
मेरा वजूद, 
मेरी "माँ" से है
मेरी साँसे,
मेरी "माँ" से है 
मेरी धड़कन, 
मेरी "माँ" से है 
मेरी जुस्तजू, 
मेरी "माँ" से है 
मेरी सफलताएं 
तेरी "दुवा" से है
ए खुदा मेरी आखिरी तमन्ना बस तुझसे है,
मेरी "माँ" को हमेशा सलामत रखना।🤲 


शीर्षक- अकेला चल

अकेला चल ऐ मुसाफिर जिंदगी के सफर में
अकेला आया दुनिया में
अकेला ही जाएगा वापस खुदा के घर में
ना कोई यहाँ ठिकाना है
ना कोई वहाँ बहाना है
हमें तो बस अपने अच्छे और बुरे कर्मो का 
लेखा-जोखा लेकर यहाँ से जाना है
तू अपने कर्मो के साथ चल इस सफर में
खुदा भी गर खुश होगा तेरी बंदगी से
तो वो भी रख देगा जन्नत तेरी कदम में
ना कोई यहाँ ख्वाब हैं
ऊपर वहाँ तो सिर्फ खुद का आमाल है
अकेला चल ऐ मुसाफिर जिंदगी के सफर में...
-shahjadi Begum




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