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गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

कविता/ kaur Dilwant

 पंचपोथी - एक परिचय


नमस्कार 
तो कैसे है आप लोग?
ठीक हो ना! चलिये शुरुआत करते है सबसे पहले आपका बहुत बहुत स्वागत और हार्दिक अभिनंदन!

आपको बता दिया जाता है कि यह पंच पोथी समूह नये कवियों व नये लेखकों का मंच है ,इस मंच पर नये कवि व लेखक जो अपनी रचना प्रकाशित करना चाहता हो तो उन रचना को यहाँ प्रकाशित किया जाता है।

आपकी रचना कैसे प्रकाशित करे?

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2 - कम से कम 5 रचना भेजे।
3 - हमें आपकी रचना email के माध्यम से भेजे।
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Kaur Dilwant /कवयित्री 

मेरा परिचय

मैं दिलवन्त कौर मूल रूप से पंजाब की निवासी हूँ। मेरा लालन-पालन हरियाणा की गौरवमई धरती पर हुआ और विवाह देवभूमि हिमाचल प्रदेश में हुआ। मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली समझती हूँ कि मुझे हरियाणा, पंजाब एवं हिमाचल की धरती का स्नेह मिला। माता पिता के आशीर्वाद और मार्गदर्शन से मैंने graduation in Hons.(Punjabi), स्नातकोत्तर (post graduation in English) एवं B.ed की शिक्षा दीक्षा हरियाणा की कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से प्राप्त की। बचपन से ही मुझे खेलकूद का शौक रहा है और कबड्डी की एक बेहतरीन खिलाड़ी होने के कारण मैंने अपनी टीम का नेतृत्व राज्य स्तरीय मैच में कैप्टन के तौर पर भी किया है। मेरे जीवन में मुझे सबसे अधिक गौरवान्वित क्षण याद आता है जब बेस्ट एनसीसी कैडेट के नाते दिल्ली राजपथ पर 26 जनवरी को परेड का हिस्सा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और डॉ मौलाना अब्दुल कलाम आजाद का आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ। यह क्षण जीवन में मैं कभी नहीं भूल सकती क्योंकि प्रत्येक विद्यार्थी और कैडेट इस उपलब्धि के लिए प्रयासरत रहते हैं परंतु भाग्य एवं अथक परिश्रम के बाद ही यह अवसर प्राप्त होता है।

      मेरे जीवन का लक्ष्य था आर्मी ऑफिसर बनकर देश की सेवा करना परंतु निजी कारणों के चलते यह सब अपन पूरा ना हो पाया। आज मैं शिक्षिका के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान कर रही हूँ।
                   
        मेरी लेखन यात्रा मेरे निजी अनुभवों को प्रकट करने से प्रारंभ हुई, उपरांत सामाजिक विषय एवं विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों को भावात्मक रूप देने के लिए मैंने लिखने का प्रयास किया,और इस यात्रा में मुझे अपार स्नेह प्राप्त हुआ। पाठकों के प्रोत्साहन के चलते आत्मविश्वास में वृद्धि हुई। मेरी रचनाएंँ विभिन्न मंचों पर प्रेषित हो चुकी है एवं विभिन्न प्रमाण पत्र भी प्राप्त हुए हैं।मेरा उद्देश्य सदैव रहेगा कि मैं अपनी लेखनी के साथ न्याय कर सकूँ और किसी के ह्रदय को आघात पहुंचाए बिना अपना कार्य सफलतापूर्वक करती रहूँ। इसके लिए ईश्वर एवं अपने पाठकों का आशीर्वाद चाहती हूंँ, धन्यवाद!

रचनाएँ:-


1️⃣(प्रकृति का दिव्य स्वरूप)
शून्य अधर हैं नील व्योम के, संवाद धरा से क्यूँ कर करे
पर्वत के शिख़र से सागर की गहराई तक अभिराम असर करे

उपवन के विनित हृदय की पुकार ऋतु रानी बसंत ने सुनी
पुष्पों की कोमलता लिए डाल-डाल पर बहार बनकर खिली

प्रकृति के विविध रूपों का अलंकरण देख हैं स्तब्ध नक्षत्र
कवियों की कृतियों में भी प्रकृति की है सुगंधित श्याही मानो इत्र

कहीं दरिया की बेचैन लहरें प्रेम सरोवर बन जाने को आतुर
सुर्ख नैनों से संध्या निहारती धरा-गगन का दिव्य आलिंगन

 पुष्पों पर ओस की बूंँदे बेदाग खूबसूरती का अद्भुत दृश्य है
  हृदय दिग्बंधन हुआ देखकर प्रकृति का अनुपम परिदृश्य है
अधूरे ख्वाब रहने देती नहीं कभी कुदरत मांँ का प्रतिरूप है
अन्नपूर्णा , जीवनदायिनी, सृष्टि स्वरूपा के अनगिनत रूप हैं

संरक्षण प्राकृतिक विरासत का करना मनुष्य का कर्तव्य है
परहेज है एक आदत प्रकृति की तभी ना करती नित्य तांँडव है



2️⃣(नारी के विभिन्न स्वरूप)
सहनशीलता की प्रतिमूर्ति,संस्कारों के सांँचे में जो है ढली हुई
स्वरुप ज्ञानमय है जिसका वह "मांँ" प्रकृति स्वरूपा कही गई

"बेटी" बसंत ऋतु सी,खुशहाली का सूचक,निर्मल सरिता सुमधुर
जीवन ज्योति सी प्रज्वलित, घर आंँगन की शोभा है कही गई

बहिन भाई की कलाई की आभा, उसका गौरव और अभिमान है
इस पवित्र रिश्ते की डोर अनुराग की पृष्ठभूमि पर है रखी गई

बहू के रूप में नारी नया संँसार संँस्कारों की पूंँजी से सजाती है
सास-ससुर की सेवा में समर्पित मर्यादा की स्वर्णिम छाया कही गई

नारी है नारायणी, एक ही जीवन में कर्तव्य कितने निभाती है
साहस,कर्मठता, वात्सल्य एवं समर्पण के कारण ही शक्ति रूपा कही गई

पत्नी बन कर जब आती नारी अर्धांगिनी का कर्तव्य निभाती है
पति के ह्रदय की स्वामिनी और प्रेम की अधिकारीणी है कही गई

"माँ,बहिन,बहू,बेटी और पत्नी" नारी के कितने पवित्र  स्वरूप हैं
संबंधों की कल-कल बहती तारिणी की नारी ही प्रतीर है कही गई।

3️⃣(इंद्रधनुष के सात रंँग)

इंद्रधनुष के सात रंँगों से सीखा है मैंने सदैव ऊर्जावान रहना
दुःख के घने बादलों को चीर खुशियों की मनोरम छटा बिखेरना

रंँग नारंँगी सूर्य का ताप एवं आस्था और विश्वास का प्रतीक है जैसे
बैंगनी और जामुनी वैभव धन संपदा और विशाल हृदय करते सजीव हैं

नीला रंँग स्थिरता और शिक्षा का सूचक रंँग हरा उमंग और उत्साह है
रंँग पीला स्वच्छ और उज्जवल है लाल में  वीरता और शौर्य का प्रभाव है

इन्हीं सप्तरंँगों के सानिध्य में मेरे भीतर का व्योम करता अनुपम श्रृंँगार है

4️⃣ (मानवता का पतन)
समाज की विकृत मानसिकता का दंँड अजन्मी बेटी को तब मिलता है
लिंग परीक्षण करवा गर्भ में ही शिशु के नर-मादा होने का भेद खुलता है

अभिशप्त हो चुकी है मानवता अधर्म की राह पर है स्वत: ही चल चुकी
भ्रूण हत्या के कुकृत्य और महापाप की गंभीरता को भी ना समझ सकी

बेटी को मानते हैं बोझ तभी जन्म का अधिकार भी उससे छीन लिया
नन्हीं सी कली को निर्दयता से अहंकारी, अविवेकी मनुष्य ने रौंद दिया

ईश्वर की सृष्टि के संचालन पर आधिपत्य स्थापित करना चाह रहा
जिस देवी की करता है आराधना उसका ही अस्तित्व मिटाता जा रहा

कर रही है करुण पुकार तनुजा जीवन का अधिकार वह भी चाहती है
माता-पिता के आँगन में हर्ष उल्लास का पुष्प बन प्रस्फुटित होना चाहती है


5️⃣ (अजन्मी बेटी की पुकार)
मांँ सुन ना, मुझे तुझसे कुछ कहना है
मांँ मैं तेरी कोख में पलती हुई तेरी बेटी हूंँ
मैं नन्हा सा भ्रूण हूंँ अभी बहुत ही छोटी हूंँ
मांँ सुन ना, मुझे अभी और बड़ा होना है

ये आवाजें हैं कर्कश सी हृदय मेरा चीरती हैं
मशीनों और औजारों से अंँग अंँग काटती हैं
लहूलुहान हो जाती हूंँ दर्द से मैं चीखती हूँ
माँ सुन ना,असहृ पीड़ा का हाल तुझे कहना है

एक बार बस एक बार मौका मुझे भी दे
इस दुनिया को देखने का मौका मुझे भी दे
तेरे इस उपकार के बदले हर दर्द सह लूंँगी
ना देना पेट भर रोटी मैं भूखी ही रह लूँगी
तेरी गोद में सर रखकर मुझे भी सोना है





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शीर्षक-



1)कभी स्वर लहरी बनकर कभी बनकर मन की उमंँग और भावना
अदृश्य तरंँगे प्रेम की,खोज लेती हैं दिल से दिल तक का रास्ता
 
अनुभव होता है वात्सल्य मांँ के आंँचल का मीलों दूर भी
और ना जाने कैसे हो जाता है असर पिता की दुआओं का

खींच लाती है कशिश परिंदे को अपने घोंसले की तरफ आखिर
बिना किसी सुख-सुविधा के भी कर ही लेता है बच्चों की पालना

लेता है प्रेम हिलोरें हृदय में जब प्रियतम और प्रेयसी के 
विचलित प्रेमियों को फिर आतुरता मिलन की करती है उतावला

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शीर्षक-



2)जहांँ हर यत्न क्षीण हो जाता है
मानव निराशा में लीन हो जाता है
समस्याओं का समाधान होता नहीं
असफलताओं का प्रभाव हो जाता है

ऐसे में केवल एक उपाय शेष रह जाता है
विश्वास उत्कंठाओं से मुक्ति दिलवाता है
आस्था का केन्द्र बिंदु हृदय जब हो जाए
मन और मस्तिष्क में संतुलन हो जाता है

ईश्वर के प्रति समर्पण शान्ति प्रदान करे
सौम्य एवं शिष्ट व्यवहार का उदाहरण बने
ईश्वर से मेरी प्रार्थना है ऐसा चरित्र सबका बने
अशांति,भय, विकृतियों को नष्ट करे..

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पंचपोथी एक साहित्यिक मंच है,इस मंच पर आपको मिलेगी हिन्दी साहित्य रचना (जैसे कविता,गज़ल,कहानी आदि) 
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