जिस युद्ध में हासिल की योद्धाओं ने महारथ।
महाकाव्य है वेदव्यास की रचना ग्रंथ ये महाभारत।।
कथा प्रारम्भ में ही बनें शांतनु सम्राट।
गंगा नामक सुंदरी के सिंदूर भरे ललाट।।
गंगे शांतनु के हुए कई तेजस्वी सपूत।
किंतु मां के निर्ममता से ना रहा कोई अछूत।।
सात शिशुओं को दिया उसने नदी में बहा।
आठवें को देख शांतनु को ना गया रहा।।
किन्तु गंगा ने स्मरण कराया अपना वचन और सूत्र।
आठवां बालक ही कहलाया देवव्रत गंगापुत्र।।
चार वर्ष व्यतीत कर शांतनु गए यमुना तट ।
तरूणी सत्यवती मिली जो थी एक केवट।।
देख तरुणी सत्यवती को हिय में भरा उमंग।
शांतनु गए केवट राज के पास लेकर प्रेम प्रसंग।।
राजा के समक्ष एक शर्त रखे केवट राज।
सत्यवती के पुत्र के नाम होगा हस्तिनापुर साम्राज्य।।
शांतनु देवव्रत का था बड़ा ही गहरा संबंध।
टाल दी सत्यवती से बनाने में रक्त संबंध।।
पिता की व्यथा देवव्रत हुए आत्म विभोर।
सारथी लेकर चल दिए केवट राज की ओर।।
शर्त सुनकर अल्प हो गई सारी विद्या।
अविवाहित रहने की ली अखंड भीष्म प्रतिज्ञा।।
सत्यवती शांतनु से हुए चित्र और विचित्र।
अंबिका और अंबालिका का विचित्र से जुड़ा रिश्ता पवित्र।।
अम्बा, अंबिका और अंबालिका को भीष्म ने ली जीत।
अम्बा तो गाती थी हमेशा शाल्व का ही गीत।।
सौभ देश के शाल्व पर अम्बा थी अनुरुक्त।
पति मान बैठी थी उसे यह बात थी अभी गुप्त।।
अम्बा की बात सुनकर भीष्म भेजे उसे शाल्व के पास।
ठुकरा दिया सौभ राज ने तो सब रह गए उदास।।
बेचारी अम्बा ने सुनाई भीष्म से कथा वृतांत।
इस विषय में विचित्र भी रहे एकदम शांत।।
अम्बा ने भीष्म के सर मढ़ी अपनी दुखों का दोष।
बदला लेने की भाव से चली गई वह दूर कोश।।
भीष्म के वध की राजाओं से मांगी भीख।
लेकिन उसकी सेवा में कोई ना हुआ शरीक।।
चलते चलते हो जाती थी सुबह दोपहरी शाम।
ब्राह्मणों ने बताया परशुराम जी का नाम।।
परशुराम और भीष्म के बीच हुआ जोरदार टक्कर।
भगवन भी हार गए अम्बा का चला ना कोई चक्कर।।
तब अम्बा ने शुरू की वन में जाकर तपस्या।
शिखंडी बनके सुलझ गई उसकी सारी समस्या।।
स्त्री रूप त्यागकर द्रुपद के गई महल।
सेनापति बनकर आरंभ की एक नई पहल।।
सूरसेन की कन्या को कुंतीभोज ने लिया गोद।
कुंती के नाम से कराया उस पृथा का बोध।।
महर्षि कुंती के सेवा से हुए प्रसन्न।
दुर्वासा के वरदान से कुंती का विचलित हो गया मन।।
महर्षि दुर्वासा ने दिया कुंती को एक वरदान।
ध्यान करोगी जिस देव का देगा वह पुत्र अपने समान।।
सूर्य के संयोग से सुंदर बालक का हुआ जन्म।
बहा दिया कुंती ने उसे किंतु अधिरथ हुए प्रसन्न।।
यही बालक आगे चलकर हुआ कर्ण नाम से विख्यात।
किंतु यह बात कुंती को ना थी कभी ज्ञात।।
अभी भी बाकी हैं कर्ण की कहानी।
जो था बहुत दिल से दानी।।
कुंती के विवाह खातिर पिता ने रचा स्वयंवर।
माला पहनाई पांडु के गले फूल बरसाये अंबर।।
जिन्होंने किये कई प्रतापी राजा को भी परास्त।
अंबिका अंबालिका से थे जन्मे पांडु और धृतराष्ट्र।।
धृतराष्ट्र ने गंधारी से व्याह रचाई।
पांडु ने भी माद्री की मांग सजाई।।
कुंती और माद्री ने दिये पाँच पांडव सुत।
गंधारी ने जन्मे सौ कौरव कपूत।।
पांडु भी शाप से गए स्वर्ग सिधार।
माद्री भी होकर दुःखी चली गयी इस लोक से पार।।
सत्यवती और बहुएँ भी त्याग गई सब वन।
तपस्विनी के भाँति छोड़ गई स्व तन।।
साथ में ही रहने लगे कौरव और पांडव।
कौरव करे पांडव पर प्रचंड तांडव।
कपटी दुर्योधन ने बनवाया वरणावत में लाख का घर।
लेकिन पांडव थे हर परिस्तिथि में ।।
विदुर ने भी भेद दिया था इस समस्या का हल।
सुरक्षित निकल गए बाहर ना पाए कोई जल।
भीमसेन ने किया बकासुर का वध।
धारण किया सबसे बड़ा बलवानका पद।।
जब पांडवों ने धरा एका चक्र में ब्राह्मण का वेश
कन्या द्रौपदी के स्वयंवर में व्यस्त था पांचाल नरेश.
इस स्वयंवर में मौजूद थे कई धनुर्धर वीर
प्रतिबिंब देखकर मारना था मछली की आंख में तीर.
पांडु पुत्र अर्जुन है यह साहस कर दिखाया
द्रौपदी को ब्याह कर कुंती के पास लाया.
माता ने अनजाने में बहू को पांडवों में दी बांट
युधिष्ठिर बने इंद्रप्रस्थ के भावी सम्राट.
मामा श्री ने रचा वेयर विरोधी चौसर का खेल
शकुनी और जुए का था षड़यंत्रकारी मेल.
शकुनि ने युधिष्ठिर को दिया खेल का निमंत्रण
खेल में बनाया पूर्णत: अपना ही नियंत्रण.
चारों भाई को हार युधिष्ठिर हुए संपत्तिहीन
उन्होंने द्रौपदी की भी स्वतंत्रता उससे ली छिन.
दुशासन ने द्रौपदी का किया चीरहरण
तब द्रौपदी ने ली श्री कृष्ण गोविंद की शरण.
सखी द्रौपदी की लाज रखी और बढ़ाई चीर
अपनी माया जाल से ढक दिया पूरा शरीर
भरी सभा में बैठकर जो देख रहे थे यह पाप
यज्ञ सैनी ने दिया उन्हें मृत्यु का शाप
दुर्योधन ने भेजा उन्हें 12 वर्ष का वनवास।
मत्स्य देश में बिताया अपना 1 वर्ष अज्ञातवास।।
भीम ने पाई बल और अर्जुन ने पाशुपतास्त्र।
नकुल देव ने ली आयुर्वेद युधिष्ठिर ने बढ़ाया शास्त्र।।
वनवास की अवधि पूरी होने में कुछ ही दिन शेष।
पांचों भाई कर रहे थे जल का ही अन्वेष।।
कुछ ही दूरी पर दिखाएं छोटा सा जलाशय।
नकुल सह अर्जुन भीम ने पूर्ण कि अपनी आमाशय।।
जलाश्य के पास मृत पड़े थे चारों भाई।
यह देख युधिष्ठिर की आंखों में आंसू भर आईं।।
युधिष्ठिर ने भी जलाशय में हाथ लगाई।
तभी एक यक्ष की आवाज कानों तक आई।।
यक्ष ने पूछे कई प्रश्न युधिष्ठिर ने दिया उत्तर।
पक्षपात रहित न्याय देखकर वह भी रह गए निरुत्तर।।
चारों भाई हो गए फिर से जीवित।
यक्ष संवाद रही युद्धिस्थिर तक ही सीमित।।
बारह वर्ष का पूर्ण हुआ जब वनवास.
विराट राज में अर्जुन बने नर्तकी द्रौपदी बनी दास.
भीम बने रसोईया तो युद्धिष्ठिर बने मंत्री कंक.
रखवाली करते अस्तबल का नकुल सहदेव संग.
विराट पुत्री उत्तरा और सुभद्रे पुत्र का हुआ लगन.
कर्ण ने कवच कुंडल भी दे दिया दान।
ये दुनिया करती उसके दानी होने की गान।
कौरवों के साम्राज्य पर छाया काला बादल सघन.
राजदूत संजय को थी दिव्य दृष्टि का वरदान.
धृतराष्ट्र के समक्ष करते युद्ध का बखान.
गोविंद ने दी एक क्षण में पार्थ को संपूर्ण गीता ज्ञान.
कौरवों की बलि चढ़ाने की अर्जुन ने ली ठान.
भुगदना होगा कौरवों को चीरहरण का परिणाम.
अब शुरू होता है महाभारत का महासंग्राम.
पहले ही दिन युद्ध में भीष्म ने किया प्रहार.
इस जीत पर दुर्योधन ने मनाया खुशी का त्योहार.
दसवें दिन भीष्म भी शिखंडी के हाथों हो गए धाराशायी.
फिर पांचों पांडव ने उन्हें शर - शय्या पर सुलाई.
तेरहवें दिन अभिमन्यु ने व्यूह को दिया तोड़।
जिसके रचनाकार थे स्वयं गुरुद्रोड़।।
चक्रव्यूह में रण करने को अभिमन्यु ने थी ठानी।
नौ माह में सीखी विद्या और सोलह साल की थी जवानी।।
नहीं पता था अंतिम बाधा कैसे तोड़ी जायेगी।
हार को विजय में कैसे मोड़ी जायेगी।।
इतने में दुष्ट दुशासन ने पीछे से किया वार।
निष्प्राण हुए एक गदे से सिर पर किया प्रहार.
पुत्र सुभद्रा कुरुक्षेत्र में आंख बंद कर सो गया.
अंबर का तेजस्वी धारा धूमकेतु सा खो गया।
धृष्टद्युम्न ने भी किया द्रोणाचार्य का अंत।
कर्ण का भी अर्जुन ने किया वध तुरंत।
अर्जुन ने भीष्म को अंतिम बार पिलाई पानी।
दुष्ट दुर्योधन की भी हो गई खत्म कहानी।
द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने किया पांडवों का नमन.
उत्तरा के गर्भ से हुआ परीक्षित का जनम।
लाल रंग से सन गया कुरुक्षेत्र का रण।
भागवत भूमि लाशों की दरिया गई थी बन।
इस युद्ध में कुंती पांडु पुत्रों का हुआ हित।
अधर्म पर धर्म की हुई ये शानदार जीत।
ये थी भारत के महाकाव्य की संक्षिप्त कहानी।
जिसे हर नर नारी ने हैं दिल से मानी।
खामोश क़लम (कलम की जादूगरनी)
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