शनिवार, 24 अक्तूबर 2020

कविता/arti kumari athghara

 पंचपोथी - एक परिचय


नमस्कार 
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Arti kumari athghara 


* 1 .. 
शीर्षक —  चुनौतियों को स्वीकार करो
विधा —  कविता ------------------------------------------------
अपनी आयु और अवस्था से संबंधित सभी ख्यालों को तुम नजरअंदाज करो, 
जिंदगी के हर पड़ाव पर मिलते सभी चुनौतियों को हंसकर तुम स्वीकार करो। 

अपने बुलंद हौसले और आत्मविश्वास संग उनसे लोहा लेने के लिए स्वयं को तैयार करो, 
हो जाये अगर कहीं कोई गलती तो बेझिझक झटपट उसमें हमेशा तुम सुधार करो। 

मिल रही असफलताओं के बीच सफलता पाने के लिए तुम  कोशिश  लगातार करो , 
राहों में आये समस्त खुशियों और गमों को तुम मुस्कुरा  आदर - सत्कार करो।

न डरों कभी राहों के तूफ़ानों से तुम राही आनंदित हो हमेशा अपनी विजय करो, 
दृढ़निश्चय करो , प्रफुल्लित रहो , हर पल , हर घड़ी बस तुम निरंतर संघर्ष करो। 

— Arti Kumari Athghara (Moon) ✍✍
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* 2..
शीर्षक — एक बुजुर्ग पिता की दर्द भरी दास्ताँ
विधा —  कविता
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*स्वार्थपन भाव से लबरेज इस जालिम दौर में 
फिकर अपनो की लोग नहीं करते हैं , *
*तब ही जन्मदाता, पालनकर्ता माँ - बाप अपने
 बुढ़ापे में संतानों के रहते वृद्धाश्रम में रहते हैं। "
*बुढ़े माँ-बाप को बीमार और भूख से तड़पता छोड़
गैरों के सामने झूठी शान - शौकत का दंभ भरते हैं,*
*ना जाने क्यों ऐसे लोग पूरी माँ - बाप के बद्दुआओं 
और खुदा के कहर से क्यों नहीं डरते हैं। *

घर में पूरे दिन सभी छप्पन भोग खा रहे हैं, 
वो दिन भर में बस एक सूखी रोटी ही पा रहे हैं। 
फिर भी उन्हें सब पेटू- पेटू कहकर बुला रहे हैं, 

तब भी वो अपने झरते हुये बत्तीसियों के साथ मुस्कुरा रहे हैं।
अपने आंखों का आंसू बूढ़े हो चुके आंखों में ही सुखा रहे हैं , 
अपना दर्द लोगों की निगाहों से छिपा रहे हैं। 

अपने घर की इज्जत अभी वो बचा रहे हैं , 
पिता होने का फर्ज अब तक वो निभा रहे हैं।

कर रहे हैं मन ही मन रब से फरियाद , 
अब खोल दो प्रभु मेरे लिए मौत का द्वार। 

हर पल देखकर अपने ही संतान की कारिस्तानी ,
हर वक़्त होती है बहुत ही ज्यादा उन्हें हैरानी। 

बड़ी ही शर्मिंदगी से निकलते हैं उनके आंखों से पानी, 
जल्दी ही खत्म हो जाये उनकी सफर - ए - जिंदगानी।

बीते उन दिनों को सोचकर ताजा हो जाती है कुछ याद पुरानी, 
जब यूँ ही हंसी - मजाक में पूछते थे अपने बेटे से भविष्य की बातें अंजानी। 

आ जायेगी जब बुढ़ापा मेरा तो तुम कैसे रखोगे ख्याल हमारा, 
पूरे उत्साह से हंसकर जवाब मिलता था, पापा! आप तो जान - जिगर हो हमारा। 

सुनकर प्यारी बातें उसकी मेरी आंखों में छा जाती थी खुशियाँ नूरानी, 
लगता वक्त दिखा रहा अब हमें उसके झूठे प्यार की हकीकत वाली कहानी। 

बस यही सब सोचकर बूढ़े आंखों से झर - झर गिरता है पानी  , 
अंतर्मन की गहराइयाँ भी बन चली इक अनसुलझी सी कहानी। 

नम हुई मेरी भी आंखे ख़तम हुई फिर एक कहानी , 
रो गई आरती बता बूढ़े पिता की बता कहानी । 

करती हूं दुआ मेरे परवरदिगार अब न गुजरे किसी पर ये कठिन कहानी , 
देना सद्बुद्धि इतनी सभी को कि समझे रिश्तों की अहमियत नूरानी।

— Arti Kumari Athghara (Moon) ✍✍
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* 3 ..
शीर्षक — मुहब्बत में आखिरी बातचीत
विधा —  कविता 

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हाँ , सच में तुमसे अपने सारे रिश्ते - नाते तोड़कर  हमेशा - हमेशा के लिए मैं दूर जाना चाहती हूँ, 
हाँ , मैं बीच सफर में तुझे अकेला छोड़कर किसी और के संग अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहती हूँ। 

मुझे अपनी खुशियों की तनिक भी परवाह नहीं, पर मुझे अपनी माँ - बाप के इज्जत का ख्याल है, 
क्या अपनी खुशियों के लिए अपने माँ - बाप को छोड़ सकते हो तुम, तुमसे मेरा बस एक सवाल है। 

जिन्होंने हमें जन्म दिया, पाला - पोसा, बडा़ किया आखिर कैसे छोड़ दूं उन्हें सबसे ताने सुनने के लिए, 
हम अपनी करनी की सजा देकर माँ - बाप को, उन्हें जीते - जी घुट - घुटकर अकेले  मरने के लिए । 

हाँ , इस पूरे जमाने से इश्क़ में मैं अपने लिए बेवफा शब्द हजारों बार  सुन सकती हूँ मैं पर बेहया कभी नहीं, 
हाँ , जब तुझे लगता ही है तुम्हारे लिए मेरा प्यार सच्चा नहीं , तो ठीक है फिर मेरा प्यार झूठा ही सही। 

अपनी खुशियों की भव्य इमारत नहीं  खड़ी कर सकती मैं , अपनों की खुशियों में आग लगाकर, 
क्या सुकून से तुम कभी रह पाओगे अपनी खुशियों के साथ हमेशा के लिए अपनों से बहुत दूर जाकर। 

ठीक है अगर तुझे लगता है मेरा ये निर्णय गलत है, तो फिर क्या है सही अब तुम ही जरा हमें बताओ, 
शामिल हो जिसमें सबकी सहमति और खुशियाँ, है कोई ऐसा रास्ता तो हमें भी जरा तुम दिखाओ। 

हाँ , सच में तुमसे अपने सारे रिश्ते - नाते तोड़कर  हमेशा - हमेशा के लिए मैं दूर जाना चाहती हूँ, 
हाँ , मैं बीच सफर में तुझे अकेला छोड़कर किसी और के संग अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहती हूँ।

— Arti Kumari Athghara (Moon) ✍✍
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* 4..
शीर्षक — दोगले लोग 
विधा —  कविता 
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इस खुबसूरत , रंग - बिरंगी दुनिया में बस दोगले लोगों की ही भरमार है, 
जो अपनी ईर्ष्या की तपिश से उजाड़ देते किसी का बसा - बसाया संसार है। 

आस्तीन के सांप की तरह वो हमेशा हमारे साथ ही  विचरते रहते हैं , 
वो अपने मुख में राम बगल में छूरी रख पीठ पर हमेशा  वार करते रहते हैं।

अपनी मीठी - मीठी बातों से अक्सर  वो हमें अपने झांसे में फंसाते हैं
सामने गुणगान करके पीठ पीछे हमारे प्रति सबके मन में नफरत भरते है 

वो एक जिगरी शुभचिंतक दोस्त की तरह सुख में हमेशा साथ हमें देते हैं 
और बुरे वक्त में गिरगिट की तरह हमेशा वो अपना रंग बदल लेते हैं ।

इस खुबसूरत , रंग - बिरंगी दुनिया में बस दोगले लोगों की ही भरमार है, 
जो अपनी ईर्ष्या की तपिश से उजाड़ देते किसी का बसा - बसाया संसार है।

 — Arti Kumari Athghara (Moon) ✍✍
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* 5 ..
शीर्षक — न्याय है यही हमारा ( स्त्री — एक न्यायिक  विचार) 
विधा —  कविता
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आये दिन हो रहा है, 
हम लडकियों के अस्मत  से खिलवाड़ , 
फिर भी न जाने क्यों चुप बैठा है ये संसार। 
हम लडकियों की इज्जत क्या इतनी सस्ती है , 
ये दुनिया अंधे गूंगे बहरों की शायद इक बस्ती है। 

नहीं सुनाई देती है उन्हें हमारी दर्द भरी चीख , 
तभी तो माँगनी पड़ती है अपने इंसाफ की भीख। 
चिरकाल से अब तक हो रहे हैं हम पर अत्याचार, 
फिर भी थम ना सका अब तक ये दुर्विचार ।

डरे हुये मासूम नवजात शिशु की तरह सहम -सी गई हूं मै भी देखकर इन दरिंदे हैवानों के रोज दिन के व्यभिचार, 
 लगता है जैसे पूरा लिखकर भी न लिख सकी घोर अत्याचार। 
कपड़ों से लेकर रहन - सहन पर भी टिप्पणी कैसे ये कलुषित विचार, 
प्यार के प्रतिकार में क्यों होता है संग हमारे ये दुर्व्यवहार। 

आखिर क्यों चुप रहूं मैं, क्यों कुछ न कहूं, क्यों निष्ठुर हो रहा संसार, 
पापी की कलुषित कृतघ्नता की हो रही हम स्त्रियाँ निशदिन शिकार। 
आज दुर्योधन - दुशासन संग दोनों मिलकर कर रहा अत्याचार , 
दरिंदों के हवस की गंदी भूख की हम स्त्रियाँ क्यूं हो चली शिकार । 

अब न सहूंगी , न चुप रहूंगी चाहे  कितना भी बड़ा हो हमपर अत्याचार, 
सहनशीलता की सारी सीमाओं को कर चुके अब हम बहुत दूर तक पार । 
करना है अपनी अस्मत के लिए अपने मन मुताबिक बुराइयों पर प्रहार, 
न रहने देगें अब दरिंदगी , न होगें देगें  किसी और पर अब इस जहां में अत्याचार। 

काली के उसी विकराल स्वरूप में करने निकलूंगी फिर से पापियों का संहार , 
ना करूंगी, न सहूंगी अब हम स्त्रियाँ एक भी अत्याचार। 
जिसने जैसा किया, उसको वैसा ही मिलेगा अपराधों की सजा का संसार , 
अब लूंगी हर जुर्म का बदला, रोकूँगी अब स्वयं ही हम पर होने वाले हर अत्याचार ।।

 — Arti Kumari Athghara (Moon) ✍✍
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