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बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

कविता/ Dimple khipla

 पंचपोथी - एक परिचय


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हमारे कवि व उनकी रचनाएँ 



Dimple khipla 



रचना-1:-
 बालिका या बेटियाँ 


कभी कलियाँ,कभी चिड़ियाँ 
जैसी लगती हैं ये बेटियाँ। 
इन्ही से तो होती रौनक घर में, 
दो-दो घर महकाती है ये बेटियाँ। 
फिर भी एक भी घर न पाती है ये बेटियाँ। 
बस... बेगानी -बेगानी कहलाती है ये बेटियाँ। 
               Dimple Khipla. 



रचना-2:-
सच में  जिंदगी रफ्तार से भाग रही। 
लगे सोई नहीं, सदा से जाग रही। 
बिखर न जाए रिश्ते, उनको थाम रही। 
चमकेगा सूरज कभी, सदा से निहार रही। 
थक गई मैं..जिंदगी को पुकार रही। 
            Dimple Khipla. 




रचना-3:-
एक पल लगे मैं उड़ जाऊँ। 
खुले गगन में घूम आऊँ,
पर वो आज़ादी के पंख कहाँ से मैं लाऊँ। 
औरत हूँ न...बस सपनों में ही जीती हूँ। 
सच में लगे कि मर जाऊँ। 
जमाना क्या चाहे एक औरत से,
कि मैं बंदिशों में ही जीअ जाऊँ, 
पर अब नहीं.. बस बहुत हो गया। 
नारी भी अब हक माँगेगी, शिक्षा के पंख 
लगा कर इतनी सशक्त मैं बन जाऊँ। 
अपने फैसले मैं खुद करूँगी, तेरे कंधे से कँधा मैं मिला पाऊँ, तभी मैं भारत मां की असली बेटी कहलाऊँ। 
अपने मात-पिता का नाम दुनिया में मैं चमकाऊँ और सबके मनो से बेटा-बेटी का फर्क खत्म मैं कर पाऊँ। 
अब चाहूँ मैं खुले गगन में घूम आऊँ। 
                      Dimple Khipla. 






रचना-4:-
लगता है सब कुछ पा लिया मैने। 
ध्यान से देखा तो बहुत कुछ अभी बाकी है। 
सपनो के पीछे भागते रहे हम,
उन्हें सजाना अभी बाकी है। 
दुसरों को खुश करते रह गए हम। 
अपने लिए खुशियाँ ढूँढना अभी बाकी है। 
सदा जिए है हम दूसरों के लिए,
अपने लिए जीना अभी बाकी है। 
जिंदगी का इम्तिहान अभी बाकी है। 
                  Dimple Khipla. 





रचना-5:-
सुबह सूरज से पहले पक्षी उठ जाते हैं।
नन्हें बालों के लिए दाना ढूँढने उड जाते है।
इंसान कहता मेरी मेहनत भारी। 
बच्चों पे लगादे अपनी उम्र सारी। 
सवारथ छिपा होता है मन में। 
सहारा बनेगा बच्चा मेरा,
इस लिए दौलत लगा देता सारी। 
पर पक्षी बेचारे, बिन स्वारथ के दाना लाते, घौंसला बनाते, पता है बच्चा उड़ जाएगा, फिर भी कोई अहसान न जताते। अपने दिल की बात किसी को न  बताते,  सुबह सूरज से पहले पक्षी उठ जाते हैं। 
                            Dimple Khipla. 
 



"त्यौहारों का मौसम"

कुछ तो बता मुझे तूँ, 
क्यों ढल गई तेरी काया है। 
दुखों-गमो से क्यों घबराना।
आ गई सुखों की छाया है। 
वो समय दुबारा आया है। 
खुशियों के पैगाम फिर से लाया है। 
मिल बैठो एक साथ सब,त्यौहारों का
मौसम आया है। 



हमारे लेखक व उनकी रचनाएँ 




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