पंचपोथी - एक परिचय
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Mahesh D
शीर्षक :-माॅ॑ पिता
माॅ॑ को कोई पा न सका,पिता हमारे रथ सारथी बने
माॅ॑ का विश्वास बेहद पक्का, पिता हमारे गति बने
ख़ुद अभावों में रहकर, हमारे लिए एक प्रेरणा स्रोत बने
पूरा वात्सल्य भाव समर्पित किया, हमारे भविष्य स्त्रोत बने
प्रथम पाठशाला की गुरु माॅ॑, पिता के कांधों पर संसार मिला
घर की शाला में परिपूर्ण माॅ॑, पिता के शब्दों से व्यवहार मिला
भरपूर पोषण देने वाली माॅ॑, पिता के साथ जीवनआधार बना
प्यार दुलार ममता लुटाती माॅ॑, पिता के गंभीरता से संस्कार बना
माॅ॑ से मेहमान की आवभगत, पिता से बात करने का ढंग मिला
माॅ॑ भावनात्मक शैली जगत, पिता से गूढ़ रहस्य जानने का मौका मिला
घरती जितना आॅ॑चल माॅ॑ का, पिता की सागर जितनी गहराई
प्रकृति का सौंदर्य अविरल माॅ॑ का, पिता ने अम्बर पे ध्वजा फहराई
बच्चों के लिए मुसीबत का छाता माॅ॑ पिता विकास तक का साया
माॅ॑ बाप के चरणों में स्वर्ग है, हमें तो माॅ॑ बाप का अनुराग ही भाया
Mahesh D
शीर्षक :-वीर अभिमन्यु
महाभारत के इतिहास में ऐसा नवयुवक जिसने वीरता की मिसाल बनाई
कोई नहीं सुभद्रा का लाल जो गर्भ मेंबातसुनकरद्वंद युद्ध की मशाल जलाई
सुभद्रा जिसकी माॅ॑ अर्जुन जिसका पिता,अभिमन्यु था हाॅ॑ माॅ॑ के गर्भ में सीखा चक्रव्यूह में घुसने का अधिकार
कृष्ण जिसका मामा अर्जुन की बात सुनते सुनते माॅ॑ को नींद आ गई,बाहर कैसे निकले चक्रव्यूह का द्वार
मामा के संरक्षण में सीखा योग्य ज्ञान और शस्त्र की विद्या का ज्ञान
परमवीर योद्धा अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर निकलने में थे अज्ञान
शस्त्र सीखा प्रद्युमन से अस्त्र की विरासत अर्जुन ने सिखलाई
चक्रव्यूह तोड़ने की रचना गर्भ में सीखें दुनिया को अपनी महिमा बतलाई
महाभारत के युद्ध में तेरहवें दिन की कथा, लड़ते-लड़ते अर्जुन कहीं दूर निकल गए
अभिमन्यु की वीरता की मिसाल, युद्ध में कौरवों को धराशाही करते आगे बढ़ते गए
दुर्योधन ने छल अपनाया गुरु द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना रची
गुरु द्रोण ने केवल अर्जुन को बतलाई थी यह शिक्षा या अभिमन्यु के मन में बसी
सभी पांडवों के मना करने पर भी अभिमन्यु चक्रव्यूह में प्रवेश कर गए
छह चरण पार किए मकर व्यूह सर्प व्यूह कर्म व्यूह पार करते चल दिए
दुर्योधन का छल द्रोणाचार्य का कपट और जयद्रथ की कायरता काम आई
रथ के पहिए को लेकर दौड़े अभिमन्यु ताबड़तोड़ वार से वीरगति पाई
Mahesh D
शीर्षक :-मंजिल
मंजिल पाना आसान नहीं मुश्किलें जबतक साथ सही
बढ़ ही गये क़दम जबआगे सहना तूफानों का वार सही।।
मैं तो चलने का विश्वासी संकल्पपथ का दावेदार मान लूॅऺ।
युगों-युगों का मैं बंजारा गूढ़ पथ से कैसे हार मान लूॅऺ ।।
कौन किरण को रोक सका है किसने रोका जलधारा को।
मंजिल जब आवाज लगाती किसने देखा अंधियारा को।।
बढ ही गये कदम जब आगे कैसे करूण पुकार मान लूॅऺ ।
मंजिल खुद बुला रही है दृढ़ पथ से कैसे हार मान लूॅऺ।।
Mahesh D
शीर्षक:- ज़िन्दगी औरत की
विधा :- कविता
ज़िन्दगी औरत की बड़ी ही व्यस्त से व्यस्ततम होती है।
ताने सुन कर भी मुस्कुराहट अधरो पर मस्त होती है।।
दो परिवार कुल को रोशन करती देह की हालत पस्त होती है।
हर छोटी सी चीज में खुशी ढूॅ॑ढती परिवार की खुशी के लिए अस्त होती है।।
बाबुल के यहाॅ॑, ढूॅ॑ढी खुशी वर के यहाॅ॑ मिलने की आस जगाई।
वात्सल्य प्रेम बरसाया बच्चों पर आज तक बच्चों को समझ ना पाई।।
आज दिन तक औरत की ज़िन्दगी को कोई समझ नहीं पाया है।
उसने विधाता का हर लम्हा जिंदा रखा, दुख कोई भर ना पाया है।।
मन ही मन दुःख में रहती, खुशियों का चिराग उसने सबके लिए जलाया।
माॅ॑-बाप ,पति, बच्चे इन तीनों पीढ़ियों में,बस स्वयं का परचम नहीं लहर पाया।।
शीर्षक:- सफलता
बार-बार असफलता से निराश ना हो,न हो भयभीत।
जीवन एक परीक्षा है,कोशिश करने से थाम ले जीत।।
मन में सफ़लता की चाह ,जुनून सर पे चढ़कर बोला।
जीवन सर्वस्व लुटाकर , जीत ने अपना पिटारा खोला।।
जम के चाहत ऐसी करो,बुलंदियाॅ॑ तुम्हारे कदमों में हो।
परिश्रम भलेही निशान छोड़ दे देह पर,जीत कदमों में हो।।
वक़्त और कर्म को हथियार बना,फौलाद का बना ले दिल।
कड़ी मेहनत को तू राह रफ्तार बना,जीत से बार बार मिल।।
Mahesh D
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