शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

कविता/manisha rathod

पंचपोथी - एक परिचय


नमस्कार 
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Manisha rathod 



YQ ID :- rathodmanisha


कविता - 1. 

शीर्षक - मैं और मेरी परछाई 

ये कौनसी बला है जो हर वक़्त मेरे साथ रहती है... 

आगे पीछे साथ साथ चलती रहती है... 

में जहा जाऊ आती रहती.. अपनेपन का अहसास दिलाती रहती है... 

छोटी मोटी होती रहती... कभी मेरे में छिपती रहती है... 

अकेले रास्ते मे दोस्त बनकर आ जाती..  कूद के  आ जाती  फिर आगे पीछे घूमती रहती है.... 

पकड़मे आती नहीं है... पकड़ने जाऊ तो फिरसे मुजमे समाती रहती है... 

कितना भी में भागना चाहु उससे पर वो मेरा हिस्सा है... जो मेरे  हाथ न आती है पर मुझमें उतरती रहती है... 

में ही हु  ये.... और ये  मेरी  परछाई है..जो मुझे चाहती रहती है.. 

-मनीषा (मीनी) राठोड 

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कविता - 2. 

 

शीर्षक -इतराओ मत .. 

 

किस बात पर इतना इतराते हो 

किस बात पर इतना घमंड है 

हर किसीको वक़्त होते झुकना पड़ता है 

क्यों इतराये इतना अपने तेज पर 

सूरज भी ढालना पड़ता है शाम होते 

क्यों इतराये इतना खूबसूरती पर 

क्यों करे खूबसूरती का ग़ुरूर 

चाँद को भी ग्रहण लगते देखा है 

जमीन पर रहते हो तो चलना सीखो 

बिना वजह उडनेकी जरुरत नही होती 

वाह वाही तो दुनिआ पूरी करती 

दिलसे तारीफ कोई नही करता 

बस दिखावेकी यह दुनिआ है 

अकड़ के रहोगे तो उड़ जाओगे 

तूफान की आंधी आयेगी उखाड़ देंगी 

झुकना सीखो पेड़ की तरह 

झुकोगे तो आँधीका सामना कर पाओगे 

तेल की बून्द से बनो 

जो सागर पार कर पायेगी 

ऐसी नांव नहीं जो मजधार में डूबा देंगी 

कभी ऐसी बारिश आएगी 

सारे गीले शिकवे बहा ले जाएगी 

घमंड चकनाचूर हो जाये 

"मीन" कहे ऐसा हो तो सारी दुनिआ स्वर्ग बन जाये 

-💕*मनीषा (मीनी) राठोड*💕 

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कविता - 3. 

शीर्षक – कैसे दिन .... 

कैसे  दिन  आये  है ... 

कैसे  दिन  आये  है ...  

दुनिआ  बदली  पलमे ... कैसे  दिन  आये  है ... 

रीत रस्मे  बदली  पलमे ... कैसे  दिन  आये  है ... छुटिआ  है  पर  मनानेकी  वो  ख़ुशी    आई...  कैसे  दिन  आये  है ... 

दूर  है  वो  पास      पाते  और  पास  है  उसे  छू    पाते  ...कैसे  दिन  आये  है ... 

जो  घर  जाने  तरसते  उसी  घर  में  बंद  है ... कैसे  दिन  आये  है ....  

महीना - तारीख  भूल  गए  है ...सुबह  शाम  एक  सा  लगता .... 

केलिन्डर  भी  बईमान  लगता ...कैसे  दिन  आये  है .... 

खुदके  इत्र  की  खुशबुभी  भूले ... पूरा दिन   सेनीटाइजर जो  लगते .. कैसे  दिन  आये  है ... 

मावा  मिठाई  बंद  हो  गया .. घरमे  सात्विक भोजनमे  ही  तृप्त  हो  जाते .. कैसे  दिन  आये  है ... 

रस्ते  समसाम  हुए ....हमारी  " डुगडुग "  को  बुलाते  फिर  भी  जा    पाते  ... कैसे  दिन  आये  है ..हवाएं  साफ  हो  गई  अपने  आप  ..फिर  भी  हम  साँस  लेने  से  डरते ... कैसे  दिन  आये  है ... चहेरो  की  गोलाइयाँ  को  देखते  ..मुस्कराहटोको तरसते ..क्युकी  मुस्कुराहटे  मास्क  में  छिपी है ...कैसे  दिन  आये  है ...  

इंसान  जो  बन  बैठा  था  इस  जग  का  तानाशाह ...एक  रातमे  दुनिआ  बदली ..हाथ  फैलाये  खड़ा  है ..मदद  मांगता  रबसे ...कैसे  दिन  आये  है ... 

मनीषा (मीनी) राठोड 

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कविता - कविता - 4. 

 

शीर्षक – धरती 

 

ये धरती माँ की गोद जैसी । 

उस मिट्टी मे जन्मे और 

खेल कूद बड़े हुए । 

बचपन बीता मिट्टी के खेलमे । 

अब तो सारा इ- बना दिआ । 

इ-मेल इ-कॉमर्स पे दुनिआ सारी है...। 

सारी दुनिआ बंद हुई इस कम्प्यूटर के डिब्बेमे...। 

ये देख रोटी बिलखती ये धरती माँ है....। 

आज बंद है सारे अपने घरो में । 

प्रकृति निकली बहार टहलने । 

यह देख फिर यह धरती  खिलखिलाती । 

सहजीवन का पाठ हमे पढ़ाती । 

यहीं धरती हमे सिखाती । 

यहीं धरती हमारी माँ है ।। 

-मनीषा (मीनी) राठोड 

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कविता – 5 

 

शीर्षक – जिंदगी  

 

क्या है ऐ जिंदगी 

बनते बिगडते रिश्तो का हिसाब है ऐ ज़िंदगी ।। 

कभी धुप तो कभी छांव है ऐ ज़िंदगी ।। 

कभी हसती तो कभी रुलाती ऐ ज़िंदगी ।। 

कभी बिंदास होके खिलखिलाती तो कभी ठोकरो से टूटती ऐ ज़िंदगी ।। 

कभी ख़ुशदिल तो कभी मज़बूर बनती ऐ ज़िंदगी ।।

 

फ़िर भी हंसती और खिलखिलाती ज़िंदादिल ऐ ज़िन्दगी ।। 

ज़िन्दादिल ऐ ज़िन्दगी ।। 

-मनीषा (मीनी) राठोड 

 



कविता – 6. 

शीर्षक – सोचा था कभी ... 

 

सोचा था कभी ... 

हम ऐसे दिन देखेंगे.... 

           पूरी दुनिआ ठहर गई है 

           न जाने कहा अटक गई है || 

एक रातमें दुनिआ बदली 

सबने अपनी शकल बदली || 

           एक अंजान आतंक के सामने 

           जैसे बैठे है सब आमने सामने || 

आतंकका उसने वार किया है 

सबको क्षणमें बेहाल किया है || 

           ढूंढे कैसे हम उस अंजानको 

           कैसे लाये उसे उसके अंजामको || 

सारी पद्धतिओने डुबकी लगाई 

आयुर्वेदने थोड़ी नैया पार लगाई || 

            दवाइयाँ जहाँ रुकने लगी 

            हल्दी - तुलसीमें एक दौड़ लगी || 

फैशन सबका बंद हो गया 

मास्कमें जीवन दिखने लग गया || 

            इस कोरोना रूपी जंग में विजयी वही बनेगा 

            जो अपने घरमें सुरक्षित रहेगा || 

सोचा था कभी... 

हम ऐसी दुनिआ भी देखेंगे.... 

 

-💕*मनीषा (मीनी) राठोड*💕    

 

 

आपका सह्रदय आभार

 



धन्यवाद एवं आभार सहित / Thanks With Regards

मनीषा राठोड़/  MANISHA RATHOD



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