शनिवार, 24 अक्तूबर 2020

कविता/ritu vemuri

 पंचपोथी - एक परिचय


नमस्कार 
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Ritu vemuri 


कविता हूं मैं - शीर्षक /ritu vemuri 

कविता हूंँ मैं व्यक्ति की अनुभूतियों का गान हूँ मैं 
भावों से परिपूर्ण अन्तर्मन का सूक्ष्म आख्यान हूँ मैं 

हृदय में दबे अस्फुट अनुभवों को मुखरित करती 
मस्तिष्क में उपजते अनकहे विचारों का वितान हूँ मैं 

गेयता का पुट है मुझमें भावसौंदर्य से गात भरा 
भाषाशिल्प निखरा मुझसे तुकांत-अतुकांत हूँ मैं 

नवरसों की बहे मुझमें गंगा अलंकार-छंद रूप निखारे
समृद्ध हुआ मुझसे साहित्य, साहित्य का श्रृंगार हूँ मैं

दूसरों तक विचार पहुँचाने का सरल-सहज माध्यम 
शिक्षा का मनोरंजक साधन समझो वेद-पुराण हूँ मैं 

इतिहास की धरोहर को आजतक संँजोकर रखा 
वर्तमान को सँवारा मैंनें भविष्य का आधार हूँ  मैं

समाज का दर्पण हूँ मै क्रांति की मशाल हूँ मैं
बिजली की कौंध शब्दों में मेरे हाँ!यलगार हूँ मैं

कह न सकते जो खुलकर वो कागज़ पर उकेरें
मौन मेधावियों को दिलाती संपन्न पहचान हूँ मै

माँ की लोरी में मैं हूँ प्रेमियों की  तड़प में मैं बसती
नारी की कराह में मैं हूँ  पूजा और अजान हूँ मैं

भाव  के तार  जब  झंकृत  होते 
कविता के स्वर तब मुखरित होते

कविता हूंँ मैं व्यक्ति की अनुभूतियों का गान हूँ मैं 
भावों से परिपूर्ण अन्तर्मन का सूक्ष्म आख्यान हूँ मैं 

हृदय में दबे अस्फुट अनुभवों को मुखरित करती 
मस्तिष्क में उपजते अनकहे विचारों का वितान हूँ मैं 

गेयता का पुट है मुझमें भावसौंदर्य से गात भरा 
भाषाशिल्प निखरा मुझसे तुकांत-अतुकांत हूँ मैं 

नवरसों की बहे मुझमें गंगा अलंकार-छंद रूप निखारे
समृद्ध हुआ मुझसे साहित्य, साहित्य का श्रृंगार हूँ मैं

दूसरों तक विचार पहुँचाने का सरल-सहज माध्यम 
शिक्षा का मनोरंजक साधन समझो वेद-पुराण हूँ मैं 

इतिहास की धरोहर को आजतक संँजोकर रखा 
वर्तमान को सँवारा मैंनें भविष्य का आधार हूँ  मैं

समाज का दर्पण हूँ मै क्रांति की मशाल हूँ मैं
बिजली की कौंध शब्दों में मेरे हाँ!यलगार हूँ मैं

कह न सकते जो खुलकर वो कागज़ पर उकेरें
मौन मेधावियों को दिलाती संपन्न पहचान हूँ मै

माँ की लोरी में मैं हूँ प्रेमियों की  तड़प में मैं बसती
नारी की कराह में मैं हूँ  पूजा और अजान हूँ मैं

भाव  के तार  जब  झंकृत  होते 
कविता के स्वर तब मुखरित होते

कविता हूंँ मैं व्यक्ति की अनुभूतियों का गान हूँ मैं 
भावों से परिपूर्ण अन्तर्मन का सूक्ष्म आख्यान हूँ मैं 

हृदय में दबे अस्फुट अनुभवों को मुखरित करती 
मस्तिष्क में उपजते अनकहे विचारों का वितान हूँ मैं 

गेयता का पुट है मुझमें भावसौंदर्य से गात भरा 
भाषाशिल्प निखरा मुझसे तुकांत-अतुकांत हूँ मैं 

नवरसों की बहे मुझमें गंगा अलंकार-छंद रूप निखारे
समृद्ध हुआ मुझसे साहित्य, साहित्य का श्रृंगार हूँ मैं

दूसरों तक विचार पहुँचाने का सरल-सहज माध्यम 
शिक्षा का मनोरंजक साधन समझो वेद-पुराण हूँ मैं 

इतिहास की धरोहर को आजतक संँजोकर रखा 
वर्तमान को सँवारा मैंनें भविष्य का आधार हूँ  मैं

समाज का दर्पण हूँ मै क्रांति की मशाल हूँ मैं
बिजली की कौंध शब्दों में मेरे हाँ!यलगार हूँ मैं

कह न सकते जो खुलकर वो कागज़ पर उकेरें
मौन मेधावियों को दिलाती संपन्न पहचान हूँ मै

माँ की लोरी में मैं हूँ प्रेमियों की  तड़प में मैं बसती
नारी की कराह में मैं हूँ  पूजा और अजान हूँ मैं

भाव  के तार  जब  झंकृत  होते 
कविता के स्वर तब मुखरित होते

©️®️ ritu vemuri


1:

शीर्षक :चेहरा एक खुली किताब
विधा : कविता 

चेहरा एक खुली किताब खुश हो खिले जैसे गुलाब 
दुखी चेहरे को प्रसाधन भी नहीं ढक पाते जनाब

अंत:करण का सारा अवसाद चेहरे पर टिकता है
आँखों की खामोशियों में अकेलापन छलकता है 

जबरदस्ती की मुस्कान,दिल खोल हँसी की पहचान 
बच्चा भी बता सकता कितनी है टूटन व कितनी थकान

चिंता समय से पहले खींच देती चेहरे पर लकीरें 
बालों की जर्दी में बसते जिम्मेदारियों के जजीरे

माथे में पड़े बल, सिकुड़ी भौहें चिंता की निशानी
इधर-उधर ताकती आँखों से छलकती बेईमानी 

चेहरा अपने आप में कई दास्ताने छिपाए रहता है 
इंसान के अरमानों के  खजाने छिपाए रहता है 

जीवन के नवरसों का लेखा-जोखा है चेहरा 
अन्तर्मन की हर्ष-विषाद का आईना है चेहरा

 पढ़ सकती सभी भाव केवल अनुभवी आँखें 
उससे भी गहराई की समझ देती डूबी आवाजें


Writer : Ritu Vemuri

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2:

शीर्षक: बंधनों में जकड़ी हुई
विधा   : कविता

बंधनों में जकड़ी हुई सिसकती हैं नारी की सांँसे
कुर्बान कर देती है अपने सपने पर रीती रहती आंँखें

कितनी ही प्रतिभाएँ कोख में मार डाली जातीं
जो जन्मीं संस्कारों की बेड़ियों में जकड़ी जातीं

दूसरे घर जाने का मंत्र सुन-सुन बड़ी होतीं
चाल-ढाल,रूप-रंग हर कसौटी पर कसी जातीं

नारी ने आधुनिकता का चोला तो पहन लिया
पर हाथ बँटाए नहीं कामकाजी महिला का पिया

एक जैसी पढ़ाई,एक जैसा पदभार पर वेतन नहीं
हर बात पर टोका -टाकी, जमाना ठीक नहीं 

परिवार के सपनों पर सदा कुर्बान होते नारी के सपने
त्याग की देवी का ठप्पा लगा छलते उसके अपने

रात दिन सबकी सेवा करे चाहे बच्चे हों या बूढ़े 
उसको  बीमार तक पड़ने का अधिकार नहीं 

अपने जीवन से अपने लिए चंद पल मिलते नहीं 
कभी दोस्तों संग जाने को कह दे भ्रकुटियाँ तनी 

बंधनों में जकड़ी हुई भी एक पहचान बनाई 
इतिहास से वर्तमान तक उदहारण देख लो भाई

Writer : Ritu Vemuri

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3:

शीर्षक : चारदीवारी के अंदर
विधा : कविता

चारदीवारी में सुरक्षा अपनों का अपनापन है 
सुख-दुख बाँटते मिलकर,अपना वृंदावन है  

सुख-चैन  है  इसमे  इसी  में चारों धाम हैं 
सारी दुनिया घूम लो इसके जैसा न  स्थान है

माँ-बाप की दुआ इसमें भाई बहन का दुलार
दुनिया की भूखी नज़रों से बचने का सहार है

इसकी दहलीज जो लाँघी सच से सामना होगा
दुनिया की बेशर्मी,बेरहमी से जूझना होगा

जब तक रहें घर की बातें चारदीवारी के अंदर
तब तक पाए मान वो घर, एकता की मिसाल है 

हर आँख का सपना चारदीवारी और इक छत
रूखा-सूखा खाकर भी मिलता यहांँ अमृत है 

Writer : Ritu Vemuri

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4: 

शीर्षक: कागजी एहसास

यहांँ  चेहरा  ही  असली  नहीं मुखौटा  है
एहसासों  की  बात  ना करें एक धोखा है

झूठी  मुस्कानों  के पीछे  दर्द के   सैलाब
झूठी मोहब्बत के पीछे हवस के नकाब

एहसास अंदर ही अंदर घुट कर मर रहे हैं
सुनने वाले शेरों की तारीफ  भी कर रहें हैं 

दिल में झाँकने वाला कोई तो मसीहा मिलता 
रौशनी के शहर में कोई असली दिया मिलता 

कागज़ों पर हो रहे जिंदगी के अहम फैसले 
एहसासों को कर रूसवा हो रहे आबरू पर हमले

By: Ritu Vemuri

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5: 
शीर्षक : जिंदगी औरत की
विधा।  :     कविता

जिंदगी औरत की जैसे तूफानों में फँसी किश्ती 
पहले जन्म के लिए संघर्ष फिर अस्तित्व की जंग लड़ती 

दूसरे घर जाना,बचपन से एक ही घुट्टी पी बड़ी होती 
दूसरे घर में भी पराई रहती लोलक सी झूलती रहती

सबकी सुनती-सोचती उसकी सुनने वाला कोई नहीं 
माँ-बीबी-बेटी-बहू हैं नाम,अपनी पहचान कुछ नहीं 

चाँद के सोने के बाद सोती,सूरज के उठने से पहले जगती
कभी ज़रा वो देर तक सो जाए पूरे घर में अफरातफरी मचती 

औरत की  जिंदगी की खलनायक इक औरत होती
 अपनी बेटी के लिए हाय तौबा बहू के लिए गड्ढे खोदती  

कामकाजी महिलाओं की जिंदगी तो दोधारी तलवार समान
काम करके जाती आते काम में जुटती रस्ते से भाजी खरीदती आती

बच्चों की पढ़ाई-ट्यूशन की पूरी जिम्मेदारी उसपर होती 
चूक करें बच्चें पर जवाबदारी औरत की होती 

 जिंदगी औरत की हमेशा ही  डर-हवस के साए में रहती
बाहर भेड़िए घूम ही रहे अपनों में भी रंगे सियार कम नहीं

जिंदगी औरत की आजकल समाचार की सुर्खियाँ बन गईं
 जिंदगी रही कहाँ मौत के साए में साँस लेने को विवश हो गई

Writer : Ritu Vemuri

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