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बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

कविता/अनिल प्रसाद सिन्हा

पंचपोथी - एक परिचय


नमस्कार 
तो कैसे है आप लोग?
ठीक हो ना! चलिये शुरुआत करते है सबसे पहले आपका बहुत बहुत स्वागत और हार्दिक अभिनंदन!

आपको बता दिया जाता है कि यह पंच पोथी समूह नये कवियों व नये लेखकों का मंच है ,इस मंच पर नये कवि व लेखक जो अपनी रचना प्रकाशित करना चाहता हो तो उन रचना को यहाँ प्रकाशित किया जाता है।

आपकी रचना कैसे प्रकाशित करे?

आप एक कवि या लेखक है तो हमे रचना भेज सकते है।
1 - आपकी रचना मौलिक होनी चाहिये।
2 - कम से कम 5 रचना भेजे।
3 - हमें आपकी रचना email के माध्यम से भेजे।
    - panchpothi29@gmail com 
4 आपकी रचना आपके नाम से ब्लॉग पर post की जायेगी।



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हमारे कवि व उनकी रचनाएँ 


अनिल प्रसाद सिन्हा

 परिचय:-

स्वागत है श्रीमान आपका  मेरी इन  रचनाओं पर,
मैं 'झारखण्ड'  के  'जमशेदपुर'  क्षेत्र  से  आता हूँ।
टाटा स्टील के  'एच आर एम'  विभाग में कार्यरत,
मैं  'अनिल प्रसाद सिन्हा'  "मधुकर"  कहलाता हूँ।
लेखन में  रुचि रखता हूँ, लेखनी ही  मेरी जान है,
चित्रगुप्त  का  वंशज हूँ, लेखनी  मेरी  पहचान है।
स्वरचित  रचना  है मेरी, अंतर्भाव  से  लिखता हूँ,
त्रुटि लगे तो क्षमाप्रार्थी, आपको समर्पित करता हूँ।
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷


रचनाएँ:-


रचना: १.

शीर्षक: 🌷 मैं कलम हूँ🌷

मैं कलम हूँ, मुझ पर ही  निहित ये संसार है,
स्याही मेरी जीवन है, कागज़ मेरा आधार है।

मुझसे ही हर प्रतिभा, मुझसे ही व्यभिचार है,
मुझसे ही प्रशासन और मुझसे ही सरकार है।

मुझसे अनिष्ट  है संभव, मुझसे  शिष्टाचार है,
मुझमें शांति  निहित है, मुझमें ही यलगार है।

मेरे शब्दों  में अग्नि, मेरे वाक्यों में  ज्वाला है,
मेरे द्वारा अलंकृत ये दिनकर और निराला हैं।

मैं कलम हूँ, और मैं चित्रगुप्त की  पहचान हूँ,
चित्रांशों के लिए तो जैसे मैं अभय वरदान हूँ।

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷




रचना: २.

शीर्षक: 🌷 अपना अपना ख्याल 🌷

 सभी के अलग-अलग ढंग, अलग-अलग चाल है,
नज़र  अपनी-अपनी है, अपना-अपना  ख्याल है।

कोई यथार्थ पर यकीं करता है तो कोई सपने पर,
कोई दूसरे पर  यकीं करता है  तो कोई अपने पर,
कोई किसी से जुदा नहीं सबका यही बस हाल है,
नज़र  अपनी-अपनी है, अपना-अपना  ख्याल है।

कोई कर्म पर यकीं करता है तो कोई किस्मत पर,
कोई मुफ्त पर यकीं करता है तो कोई मेहनत पर,
अपने आप में व्यस्त हैं,कोई करता नहीं सवाल है,
नज़र  अपनी-अपनी है, अपना-अपना  ख्याल है।

कोई राम पर  यकीं करता है  तो कोई रहमान पर,
कोई नियति पर यकीं करता है तो कोई ईमान पर,
सभी का अपना मियाद है सबका अपना काल है,
नज़र  अपनी-अपनी है, अपना-अपना  ख्याल है।

सभी के अलग-अलग ढंग, अलग-अलग चाल है,
नज़र  अपनी-अपनी है, अपना-अपना  ख्याल है।

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷






रचना: ३.

शीर्षक: 🌷मत कर तू अभिमान 🌷

धन, जन, बल, शिक्षा, पौरुष, गर हो तुम्हारे पास,
आम नहीं समझ खुद को, तुम हो बहुत ही खास।

       पता  नहीं  है  तुझको, पर मुझको है  ये एहसास,
       मत कर तू अभिमान, बस ईश्वर  पर कर विश्वास।

क्यों करता है  गुरूर  क्या किसी का  रह पाया है,
धीरे-धीरे  यही अभिमान दीमक बनकर खाया है।

      मनी और मणि की तपिश  कोई नहीं सह पाया है,
      इसी अहंकार के कारण रावण भी प्राण गंवाया है।

जब शरीर ही नहीं रहे तो  ये प्राण किसके काम का,
जब गैरत ही नहीं बची तो सम्मान किसके नाम का।

       यूँ तो जीने वाले  बेगैरत इन्सान भी  हमने देखे हैं,
        गर मान ही नहीं तो  ये अभिमान किस काम का।

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷






रचना: ४.

शीर्षक: 🌷एक और कोशिश करते हैं 🌷

भारतीय सभ्यता  संस्कृति को, विश्व पटल पर लाते हैं,
अतिथि देवो भव:  युक्ति को, पूरे विश्व को  सिखाते हैं।
इस अभियान  को लेकर, विश्व भ्रमण पर  निकलते हैं,
चलो ज़माने को बदलते हैं, एक और कोशिश करते हैं।

हम हाथ नहीं मिलाएंगे, प्रणिपात  नमस्कार  सिखाएँगे,
पाश्चात्य सभ्यता को हम,अपने दिल दिमाग से हटाएँगे।
क्यों अपनाएँ पश्चिमी सभ्यता,हम तो भारत में पलते हैं,
चलो ज़माने को बदलते हैं, एक और  कोशिश करते हैं।

बच्चे, बुजुर्गों  और महिलाएँ, पूर्ण सुरक्षित  कर दिखाएँ,
अंधविश्वासों को दूर भगाएँ,रुढ़िवादी परंपरा को हटाएँ।महिलाओं  के  आत्मसम्मान में, आत्मनिर्भर  बनाते हैं, 
चलो ज़माने को बदलते हैं, एक और  कोशिश करते हैं।

हम किसी को भरमाते नहीं, अधिग्रहण नहीं सिखाते हैं,
कोई हमें भी अधिग्रहण करे, बर्दाश्त नहीं   कर पाते हैं।
चलो अपनी सरहदों को, हम एकदम  सुरक्षित करते हैं,
चलो ज़माने को बदलते हैं, एक और  कोशिश करते हैं।

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷






रचना: ५.

शीर्षक: 🌷जिन्दगी एक किताब 🌷


मैं जब देखता हूँ अपनी जिन्दगी को,
जिन्दगी एक किताब नज़र आती है,
इसके हर एक पन्ने को गौर से देखा,
जिन्दगी बेबस लाचार नज़र आती है।
                         इसके कुछ पन्नों में कहानी लिखा है,
                         तो कुछ पन्नें तो बिलकुल ही कोरे हैं,
                         कुछ  कहानियाँ  जीवन के  पूर्ण हुए,
                         तो कुछ  कहानी अभी  भी अधूरे हैं।
इन पन्नों में  खुशियाँ है तो ग़म भी है,
कहीं  ज्यादा हैं  तो कहीं  कम भी है,
इनमें जीवन में  छाये बहार भरपूर हैं,
कहीं पर खुशियाँ हमसे कोसों दूर है।
                       इन पन्नों में कहीं चिलचिलाती धूप है,
                       ‌तो कहीं पर  तरु की  शीतल छाया है,
                       कहीं जीवन की  ठंडी बहती बयार है,
                       तो कहीं आशा निराशा से टकराया है।   
जिन्दगी क्या है  कोई नहीं जान पाया है,
जो जाना उसके लिए मात्र मोह-माया है,
'जिन्दगी एक किताब' सबने बतलाया है,
पर पूरे पन्नों को 'मधुकर' पढ़ ना पाया है।

(स्वरचित रचना सर्वाधिकार सुरक्षित @अनिल प्रसाद सिन्हा, २८/१०/२०२०)

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हमारे लेखक व उनकी रचनाएँ 




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