रविवार, 25 अक्तूबर 2020

कविता/आकाश राघव

 पंचपोथी - एक परिचय


नमस्कार 
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आकाश राघव

रचनाएँ :-


*शीर्षक : अभिवादन*

मै करता हूं अभिवादन प्यारे 
नैन सरीखे अखियन तारे 

हे त्रिपुरारी गोवर्धन वारे
हम तो तेरे धाम पधारें 

मै सेवक हूं स्वामी तू है 
मै गामी हूं मंजिल तू है

तू ही तो है माखन वाला 
तू ही है जग का रखवाला

मै करता हूं अभिवादन प्यारे 
नैन सरीखे अखियन तारे 

तू ही तो है मोर मुकुटधर
तू गिरधारी प्रीत मनोहर 

तू ही तो है वृंदावन वासी 
तू ही ठहरा गोप निवासी

तुझसे ही तो जीना मेरा 
हे गिरधारी मै हूं तेरा 

मै करता हूं अभिवादन प्यारे 
नैन सरीखे अखियन तारे 

डूबी ही नैया पार लगाता 
मोरे खिवैया क्यों इठलाता

मै तो तेरा सेवक हूं प्यारे 
चरण गहे प्रभु दास तिहारे

माया मोहि न बसहिं करत हैं
तोरी प्रीत मोर नैन बसत हैं

मै करता हूं अभिवादन प्यारे 
नैन सरीखे अखियन तारे 

तोरी मुरली अदभुत बाजे 
मन पद पंकज अधरन साजे

पीत बसन तोरे सांवली सुरतिया 
हाथ में लकुटी पांव पैजनिया

संकट तोरे निकट न आवे
कालहुं तोरे चरण दबाबे

मै करता हूं अभिवादन प्यारे 
नैन सरीखे अखियन तारे 

मोर मुकुट ओ वंशी वारे 
अब कब दर्शन होहिं तिहारे

सेवक को जो प्रीत है प्यारे 
दर्शन की अकुलाहट मारे

दूर करहुं तुम चिंता मोरी
जो कछु ठहरी प्रीत घनेरी

मै करता हूं अभिवादन प्यारे 
नैन सरीखे अखियन तारे 

*आकाश राघव*




शीर्षक : किरदार

हल्की हवाओं का किरदार हूं 
शीतल फिजाओं सा मै यार हूं 

सबको मै खुशियां देता रहूं 
बदले में दुआएं लेता रहूं 

मै बढूं इस कदर जैसे दीदार हूं 
मुफलिसी में भी सबका मै हीं यार हूं

गरीबों को सुलाना आता मुझे 
अमीरों के घर में मै किरदार हूं 

मै ही हूं खुशियां मै ही यार हूं 
पश्चिमी हवाओं सा मै ही यार हूं 

बदनसीबी में न रहता जैसे इंसा कोई 
दौलत को हैं देते तब्ज़्जों यहीं 

लोगों की खुशी में सब जाते हैं जल 
अपने गमों को भूल जाते निकल

करते न हैं अब सम्मान वो 
रखते कहां है सबका मान वो

ग़रीबी से निकला मै हकदार हूं 
रिश्ते हैं मीठे मै ही प्यार हूं 

हल्की हवाओं सा किरदार हूं 
शीतल फिजाओं सा मै यार हूं

*आकाश राघव ✍️✍️*






*शीर्षक : आंसू*

आंसू जो बताना चाहते हैं बहुत कुछ 
पर लफ़्ज़ों से बयां नहीं कर पाते 

आंसू जो छिपे होते हैं हर खुशी हर गम में 
जन्म देते हैं एक सोच को

वो सोच होती है आधारशिला(नींव) इंसान की
जो सिखाती है हर परिस्थिति में समान रहना 

और बताती है न अहम होना चाहिए न बहम
बस आता हो समान रहना 

तो हो सकते हो आप भी सफल बहने में 
जो कभी एहतियात नहीं बरतते 

चाहे गरीब जो अमीर हो नर हो नारी हो सबके 
किसी अकारण सच की तरह 

शायद ये है कोई शोध का विषय जो नहीं है 
बिल्कुल भी विचित्र अनमोल मोतियों सा

*आकाश राघव*







शीर्षक : सामाजिक परिस्थिति

ग़ज़ल की अजल में मैं अल्फ़ाज़ चुनता हूं
कुछ बीते से ख़्वाब और हिसाब बुनता हूं

मै ठहरा जहां में फीका सा जमां प्यारे  
यही कुछ वर्षों पुरानी किताब चुनता हूं

लिखे अल्फ़ाज़ खिदमत में हसीनों के 
उनको हिफाजत में कसीदे आज सुनता हूं 

लोग कहते हैं सुनना आता नहीं उनको 
मै तो जो भी सुनता सबका इलाज सुनता हूं

सुना है देखना उनको पसंद है गैरों के लिवाजों को 
उनकी नवाजिश में उन्हीं के ख्याल चुनता हूं

नजर में नोंच है जिनके सब पर तंज कसते हैं 
उन्हीं हिसाबों का बहीखाता मै आज चुनता हूं

उन्हें लाऊंगा चौराहों पर कुछ आवाज करने को
शराफत के दो चाकू उनके हाथों के नाम चुनता हूं 

लिटाकर चौराहे पर उल्टा क्या ईनाम दूं उनको 
कलम कर गर्दन बस उनकी अंजाम चुनता हूं

*आकाश राघव*




शीर्षक : भाव 
विधा : दोहा 
भाषा : हिन्दी 

भावों से भावुक बने , भावों में ही सार
 S S S S I I I S , S S S S S I
भावों से ही चित्र बना , भावों से ही प्यार
S S S S I I I S S S S S S I

*आकाश राघव*




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