पंचपोथी - एक परिचय
नमस्कार
तो कैसे है आप लोग?
ठीक हो ना! चलिये शुरुआत करते है सबसे पहले आपका बहुत बहुत स्वागत और हार्दिक अभिनंदन!
आपको बता दिया जाता है कि यह पंच पोथी समूह नये कवियों व नये लेखकों का मंच है ,इस मंच पर नये कवि व लेखक जो अपनी रचना प्रकाशित करना चाहता हो तो उन रचना को यहाँ प्रकाशित किया जाता है।
आपकी रचना कैसे प्रकाशित करे?
आप एक कवि या लेखक है तो हमे रचना भेज सकते है।
1 - आपकी रचना मौलिक होनी चाहिये।
2 - कम से कम 5 रचना भेजे।
3 - हमें आपकी रचना email के माध्यम से भेजे।
- panchpothi29@gmail com
4 आपकी रचना आपके नाम से ब्लॉग पर post की जायेगी।
हमसे social मीडिया पर जुड़ने के लिये click करे
👉 facebook
Indu sahu
इन्दु साहूपूरी बगीचा, रायगढ़छत्तीसगढ़
रचनाएँ:-
रचना1
मनहरण घनाक्षरी:8, 8, 8, 7 पर यतिप्रति पद 31 वर्ण
#नवरात्रि#
नवरात्रि आयी माता, माता का है जगराता,कन्या रूप माता बन, घर मेरे आयी हैं!
तिलक लगाऊँ मैं तो, गीत तेरे गाऊँ माता,चुनरी सजाऊँ माता, नैन ये हर्षायी हैं!
हलवा पूड़ी है भोग, माता का है शुभ योग,माता रानी निज संग, खुशियाँ भी लायी हैं!
घर में गूँजे भजन, हर्षित ये तन-मन,माता जी के शुभ नाम, चहुँ ओर छायी है
-इन्दु साहू,रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
रचना 2
रचनाकार का नाम: इन्दु साहूराज्य: छत्तीसगढ़जिला: रायगढ़शीर्षक: जीवन के रंगीन चरणविधा: छंदमुक्त
ज़िन्दगी के इस सफ़र में, प्रतिपल होते रहते बदलाव।कभी रहता है हँसी-खुशी, तो कभी होते अलगाव।
वक़्त-वक़्त की बात है, आज खुशी हैं तो कहीं है ग़म।उम्र भर बीत जाएगी, ज़िन्दगी ही पड़ जाएगी कम।
जीवन बाल्यकाल से शुरू हुआ, यह है सबसे हसीन चरण।मन है चंचल और अस्थिर, उठता है प्रश्नों का कहर।
न किसी का मोह माया और न ही कोई चिंता रहती।हँसते-खेलते ही बीत जाते, माँ न कुछ करने को कहती।
हँसते-हँसते वक़्त बीत गया, अब आने लगा कुछ ज्ञान।जैसे-जैसे हम बड़े हुए, करने लग गये सबका सम्मान।
अपने और पराये में भी, फ़र्क़ समझ आने लगा।दिखावे और सच्चाई की, बातें भी बूझे जाने लगा।
सत्य-झूठ में अंतर, भी आने लगे अब नज़र।कौन सही और कौन गलत, कौन है अमर अजर।
दुनिया की यह रीत है, जो झुके उसे और झुकाए।जीवन के हर रंगीन चरण को, चलो मिलकर हसीन बनाए।
ज़िन्दगी का हर चरण, कुछ न कुछ सिखाता है।जीवनपथ पर चलते जाओ, बात पते की बताता है।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
रचना 3
रचनाकार का नाम: इन्दु साहूराज्य: छत्तीसगढ़जिला: रायगढ़शीर्षक: मन की बातविधा: छंदमुक्त
"मन की बात"
जिंदगी का सफर है क़ुछ इस तरह सा,ना किसी का साथ और ना किसी का भरोसा।कौन है साथ और किस पर करें विश्वास,कभी भी नहीं रखना दोस्तों किसी से भी कोई आस।
जीना भी है अकेले इस वीरान सी दुनिया पर,सिर्फ साथ देंगें मम्मी पापा किसी भी सफर पर।थामेंगे हमेशा हाथ और देंगें तुम्हारा साथ,इसलिए कभी ना करना उनका विश्वासघात।
मानो तुम ये बात मेरी हमेशा सुनना बात उनकी,जिनसे मिला यह जीवन रहेंगे सदा ऋणी जिनकी।जीवन के हर सफर में वही देंगे हमारा साथ,कभी ना तोड़ना उनका जो तुम पर है विश्वास।
बहुत ही कष्ट से मिला है हमको ये प्यारा जीवन,मम्मी पापा के लिए कर दो अपना समर्पण।करती हूँ मैं उनको बारम्बार प्रणाम,जिनसे मिला यह जीवन जिन्होंने दिया मुझे नाम।
धन्य हूँ मैं बहुत जो वो मुझे मिले हैं,मानो इस जीवन मे चारों तरफ फूल खिलें हैं।बेटा हूँ मैं उनकी कभी बेटी कहकर नहीं बुलाया,हमेशा हर पल मुझे बेटा कहकर ही समझाया।
मुझे निभाना है वो हर एक फ़र्ज़ अपना,करना है पूरा हर वो उन्होंने देखा जो सपना।करती हूँ प्यार बहुत मैं नहीं है ये कोई कथा,जीवन सफल है बनाना नहीं करना इसे व्यथा।।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
रचना 4
रचनाकार का नाम: इन्दु साहूराज्य: छत्तीसगढ़जिला: रायगढ़शीर्षक: उद्देश्य मेरे जीवन काविधा: छंदमुक्त रचना
हो प्रभाकर सा उदित, प्रकाश मेरे जीवन का।रहूँ चाँद सी शीतल, जीतूँ आस विश्वास मन का।
सरिता की सलिल सी, मेरे मन का दर्पण हो।प्रेम प्रकृति सा पावन, पवित्र मेरा तर्पण हो।
जीवन के हर कदम पर, माता-पिता का साथ हो।कर्म अपना ऐसा करूँ, सबको मुझ पर अभिमान हो।
यह मेरा जीवन सदा, माता-पिता के ही नाम हो।मनानंदित मनोहर मधुर-मधुर, वाणी मेरी पहचान हो।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
रचना 5
चाँद और तारों के चमक से, रोशन है पूर्णिमा की रात।साथ अपने लेकर आयी, सुरभित स्वप्नों की सौगात।
चकोर को प्रियतमा से मिलन, की थी गंभीर जो आस।आज निश्चय ही पूर्ण होगा, यह स्वप्न ऐसा है विश्वास।
चाँद और तारों के चमक से, जगमगा उठा यह सारा संसार।लगने लगा ऐसे जैसे, आ गयी हो दीवाली का त्यौहार।
देख यह मनोरम दृश्य, मानो हृदय भी हर्षा गयी।चाँद और तारों के चमक, जगवासियों को भा गयी।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
रचना1
मनहरण घनाक्षरी:
8, 8, 8, 7 पर यति
प्रति पद 31 वर्ण
#नवरात्रि#
नवरात्रि आयी माता, माता का है जगराता,
कन्या रूप माता बन,
घर मेरे आयी हैं!
तिलक लगाऊँ मैं तो, गीत तेरे गाऊँ माता,
चुनरी सजाऊँ माता,
नैन ये हर्षायी हैं!
हलवा पूड़ी है भोग, माता का है शुभ योग,
माता रानी निज संग,
खुशियाँ भी लायी हैं!
घर में गूँजे भजन, हर्षित ये तन-मन,
माता जी के शुभ नाम,
चहुँ ओर छायी है
-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
रचना 2
रचनाकार का नाम: इन्दु साहू
राज्य: छत्तीसगढ़
जिला: रायगढ़
शीर्षक: जीवन के रंगीन चरण
विधा: छंदमुक्त
ज़िन्दगी के इस सफ़र में, प्रतिपल होते रहते बदलाव।
कभी रहता है हँसी-खुशी, तो कभी होते अलगाव।
वक़्त-वक़्त की बात है, आज खुशी हैं तो कहीं है ग़म।
उम्र भर बीत जाएगी, ज़िन्दगी ही पड़ जाएगी कम।
जीवन बाल्यकाल से शुरू हुआ, यह है सबसे हसीन चरण।
मन है चंचल और अस्थिर, उठता है प्रश्नों का कहर।
न किसी का मोह माया और न ही कोई चिंता रहती।
हँसते-खेलते ही बीत जाते, माँ न कुछ करने को कहती।
हँसते-हँसते वक़्त बीत गया, अब आने लगा कुछ ज्ञान।
जैसे-जैसे हम बड़े हुए, करने लग गये सबका सम्मान।
अपने और पराये में भी, फ़र्क़ समझ आने लगा।
दिखावे और सच्चाई की, बातें भी बूझे जाने लगा।
सत्य-झूठ में अंतर, भी आने लगे अब नज़र।
कौन सही और कौन गलत, कौन है अमर अजर।
दुनिया की यह रीत है, जो झुके उसे और झुकाए।
जीवन के हर रंगीन चरण को, चलो मिलकर हसीन बनाए।
ज़िन्दगी का हर चरण, कुछ न कुछ सिखाता है।
जीवनपथ पर चलते जाओ, बात पते की बताता है।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
रचना 3
रचनाकार का नाम: इन्दु साहू
राज्य: छत्तीसगढ़
जिला: रायगढ़
शीर्षक: मन की बात
विधा: छंदमुक्त
"मन की बात"
जिंदगी का सफर है क़ुछ इस तरह सा,
ना किसी का साथ और ना किसी का भरोसा।
कौन है साथ और किस पर करें विश्वास,
कभी भी नहीं रखना दोस्तों किसी से भी कोई आस।
जीना भी है अकेले इस वीरान सी दुनिया पर,
सिर्फ साथ देंगें मम्मी पापा किसी भी सफर पर।
थामेंगे हमेशा हाथ और देंगें तुम्हारा साथ,
इसलिए कभी ना करना उनका विश्वासघात।
मानो तुम ये बात मेरी हमेशा सुनना बात उनकी,
जिनसे मिला यह जीवन रहेंगे सदा ऋणी जिनकी।
जीवन के हर सफर में वही देंगे हमारा साथ,
कभी ना तोड़ना उनका जो तुम पर है विश्वास।
बहुत ही कष्ट से मिला है हमको ये प्यारा जीवन,
मम्मी पापा के लिए कर दो अपना समर्पण।
करती हूँ मैं उनको बारम्बार प्रणाम,
जिनसे मिला यह जीवन जिन्होंने दिया मुझे नाम।
धन्य हूँ मैं बहुत जो वो मुझे मिले हैं,
मानो इस जीवन मे चारों तरफ फूल खिलें हैं।
बेटा हूँ मैं उनकी कभी बेटी कहकर नहीं बुलाया,
हमेशा हर पल मुझे बेटा कहकर ही समझाया।
मुझे निभाना है वो हर एक फ़र्ज़ अपना,
करना है पूरा हर वो उन्होंने देखा जो सपना।
करती हूँ प्यार बहुत मैं नहीं है ये कोई कथा,
जीवन सफल है बनाना नहीं करना इसे व्यथा।।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
रचना 4
रचनाकार का नाम: इन्दु साहू
राज्य: छत्तीसगढ़
जिला: रायगढ़
शीर्षक: उद्देश्य मेरे जीवन का
विधा: छंदमुक्त रचना
हो प्रभाकर सा उदित,
प्रकाश मेरे जीवन का।
रहूँ चाँद सी शीतल,
जीतूँ आस विश्वास मन का।
सरिता की सलिल सी,
मेरे मन का दर्पण हो।
प्रेम प्रकृति सा पावन,
पवित्र मेरा तर्पण हो।
जीवन के हर कदम पर,
माता-पिता का साथ हो।
कर्म अपना ऐसा करूँ,
सबको मुझ पर अभिमान हो।
यह मेरा जीवन सदा,
माता-पिता के ही नाम हो।
मनानंदित मनोहर मधुर-मधुर,
वाणी मेरी पहचान हो।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
रचना 5
चाँद और तारों के चमक से,
रोशन है पूर्णिमा की रात।
साथ अपने लेकर आयी,
सुरभित स्वप्नों की सौगात।
चकोर को प्रियतमा से मिलन,
की थी गंभीर जो आस।
आज निश्चय ही पूर्ण होगा,
यह स्वप्न ऐसा है विश्वास।
चाँद और तारों के चमक से,
जगमगा उठा यह सारा संसार।
लगने लगा ऐसे जैसे,
आ गयी हो दीवाली का त्यौहार।
देख यह मनोरम दृश्य,
मानो हृदय भी हर्षा गयी।
चाँद और तारों के चमक,
जगवासियों को भा गयी।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
शीर्षक - नये पते
विधा: छंद मुक्त
अलंकार: अनुप्रास अलंकार
नित नवीन नुकूलित पत्त्ते,
मनमोहक मनानंदित करते।
सुखद सुगन्धित सुकोमल,
सदैव सुपरिलक्षित सजते।
कर्म पथ पर सदैव समर्पित,
सुशोभित सुसज्जित वृक्षों पर।
हँसमुख हर्षित हर्षोल्लास हैं,
वसंत ऋतु के अधरों पर।
परोपकार करना हमें बताते,
गिर कर उठना हमें सिखाते।
प्रसन्नचित प्रफुल्लित पथ पर,
अग्रसर होकर हमें दिखाते।
मन मस्तिष्क में निज छाप छोड़,
आ जाते लेकर नया मोड़।
निराश हताश नकारात्मक तोड़,
आस विश्वास सकारात्मक जोड़।
नवजीवित नुकूलित नये पत्त्ते,
मन में भर दें नवप्रीत।
सजीव सुसंस्कृत सुगंधित,
मन को कर दें प्रसन्नचित।।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
शीर्षक- हमारा छतीसगढ़
पूरे भारतवर्ष में कहलाता है,
यह धान का कटोरा।
लोक कला हो या संस्कृति,
हर क्षेत्र में उन्नति ही बटोरा।
राजिम में राजीवलोचन प्रसिद्ध,
तो दंतेवाड़ा में है माता दंतेश्वरी।
रतनपुर में माता महामाया,
डोंगरगढ़ पहाड़ी में बसी माँ बम्लेश्वरी।
चंद्रपुर की चंद्रसेनी,
रायगढ़ की बूढ़ी माई।
इतने है दर्शनीय स्थल,
देख सबको करें सुमिराई।
प्राचीन से है प्रसिद्ध,
दक्षिण कौशल नाम से विख्यात।
माता कौशल्या यहाँ की बेटी,
श्रीरामचंद्र का ननिहाल।
उद्योगों के क्षेत्र में भी,
बना रहा अपना पहचान।
कोरबा है विद्युत/ऊर्जा की नगरी,
भिलाई है इसकी जान।
पंथी ददरिया करमा पंडवानी,
हैं यहाँ के लोकनृत्य।
नंदन वन हो या जंगल सफ़ारी,
संरक्षण में भी कर रहा कृत्य।
महानदी है गंगा समान,
राजिम पवित्र त्रिवेणी संगम।
चित्रकोट तीरथगढ़ की छटा,
सबका हर लेता है मन।
पूरे देश का हृदयस्थल,
चहुँ ओर से घिरा अतुलित।
पूरी तरीके से सुरक्षित,
मन मोहित करता प्रफुल्लित।
-इन्दु साहू
पूरी बगीचा, रायगढ़
छत्तीसगढ़
पंचपोथी एक साहित्यिक मंच है,इस मंच पर आपको मिलेगी हिन्दी साहित्य रचना (जैसे कविता,गज़ल,कहानी आदि)
तो देर किस बात की आइये पढ़ते है कुछ रचनाएँ जो प्रस्तुत है इस ब्लॉग पर
इससे पहले आपको बताना चाहेगें पंचपोथी your qoute appपर एक compitation fourm प्रोफाइल है जो प्रतियोगिता आयोजित करता है।
हमारे बारे में अधिक जानकारी के लिये follow करे:-
अन्य रचनाएँ
हमारे कवि व उनकी रचनाएँ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें